- पाकिस्तान की पसंद, बिलौआ के पान की खेती पर मडराया पानी का खतरा, अब विलुप्ती की कगार पर है यह खेती


 घनश्याम बाबा
डबरा (बेजोड रत्न ब्यूरो)। पाकिस्तान और खाडी देशों में जिस पान की मिठास के कायल लोग हुआ करते थे उस खेती पर अब धीरे-धीरे कयामत ढा रही है। कारण शासन-प्रशासन की अनदेखी, बिलौआ क्षेत्र में पानी की कमी के चलते यह पान की फसल अब विलुप्ती की कगार पर है। क्षेत्र का 1000 किसान की मुख्य फसल जो पहले पान हुआ करती थी उनकी रोजी-रोटी हुआ करती थी जिस पान की खेती से अपने परिवार का पालन-पोषण किया करते थे अब वह पान की खेती के बजाय सेम की खेती करने के लिए मजबूर हो रहा है।

अत्यधिक महंगाई की मार के चलते यह फसल बर्बाद......

 दरअसल, मुगल काल से लेकर वर्तमान में देश के अंदर पान खाने की परंपरा आज भी लोगों को पान की दुकान की ओर खींच लाती है। ग्वालियर से 20 किलोमीटर दूर बिलौआ कस्बे में पीढी दर पीढी यहां के रहने वाले चैरिसया समाज द्वारा पान की खेती से जहां अपने परिवार का पालन-पोषण करते है। वहीं दूसरी ओर अत्यधिक महंगाई होने से पान के पत्तों के दाम किसानों को सही नहीं मिल रहे है और क्षेत्र में जलस्तर गिरने से फसल के लिए पानी नहीं मिल रहा है। यहां तक कि शासन की बेरूखी होने से पान की खेती से किसान का मोह भंग होता जा रहा है, इस बार किसान पान की खेती से मोह भंग कर रहा है।

एक जमाने में पान की खेती मुख्य व्यवसाय था किसानों का......

 बिलौआ अंचल पान की खेती के लिए विश्व विख्यात है, यहां का पान विदेशों में जाता है लेकिन किसानों का दर्द अब पान की खेती से झलकने लगा है। किसान काशीराम से जब बातचीत हुई तो उनका कहना था कि बिलौआ का पान मप्र सहित दिल्ली, उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पाकिस्तान क्षेत्र में जाया करता था। एक जमाने में यहां पान की खेती की पैदावार किसानों की मुख्य खेती हुआ करती थी, किसानों ने वह मटके भी दिखाएं जिन मटकों से पान की खेती में पानी दिया जाता है। किसानों का साफ कहना था कि पानी नहीं होने से आखिर हम फसल करें भी तो कैसें।

मजबूर किसान कर रहे है सेम की फसल......

मजबूर किसान मोहन सिंह ने बताया कि साहब आप ही बताओ कि हमारी मजबूरी जब पान की खेती के लिए पानी ही नहीं मिलेगा तो हम खेती करेंगे कैसे..? हम लोगों के लिए पान की खेती के लिए दिन में 3 बार पानी देना पडता है और मेहनत कर क्षेत्र का किसान बडी मुश्किल में पान की खेती खडी कर पाता है। अब पानी नहीं है ऐसी स्थिति में अंचल का पूरा किसान सेम की फसल कर रहा है, सेम की फसल में कम से कम एक माह में एकाध बार देना पडता है जबकि देखा जाए तो हमारी कई पीढियां इस पान की खेती से यहां तक पहुंची है। अगर सरकार का रूख यूं ही रहा तो इस अंचल से पान की खेती एक दम विलुप्त हो जाएगी।

बिलौआ का पान लोगों के ओठों की लाली.......

 बिलौआ का पान इसलिए भी विश्व विख्यात है कि इस पान से आम इंसान जहां अपना शौक इजहार करता है वहीं दूसरी ओर अपने ओंठो को भी गुलाबी करता है। अब तो इस क्षेत्र में काली गिट्टी के क्रेशर देश ही नहीं विदेश में विख्यात है, 5 वर्षाें पहले देश-विदेश में पान की फसल जाया करती थी। पान की टोकरियां यहां का मुख्य व्यापार हुआ करती थी, ये टोकरियां पहले दिल्ली फिर पाकिस्तान फिर अन्य खाडी देशों में भेजा जाता था। जिस तरह बनारस का पान आज अपनी मुख्य पहचान रखता है इसी तरह बिलौआ का पान भी लोगों के ओंठो की लाली हुआ करती थी। पान की खेती होली के बाद चेत्र माह में बुवाई होती थी जो 3 वर्षाें तक चला करती थी। हर साल इस फसल से लाखों रूपये कमाकर अपने परिवार का पोलन-पोषण और आजीविका चलाते थे लेकिन सिंचाई के मुख्य साधन न होने के चलते यह फसल धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है।

ऐसे होती है पान की खेती......

पान की खेती का बरेजा, बारी (मचान) लोहे के तारों और लकड़ी के जाल से खेत के ऊपर बनाया जाता है। पान की खेती को सर्दी, गर्मी, बरसात और धूप से बचाने के लिए खेत के ऊपर लोहे और लकड़ी की सहायता से जाल बनाया जाता है। इस जाल के ऊपर घास की परत चढ़ाई जाती है. जिससे पान की खेती को धूप से बचाया जा सके। खेत के चारों तरफ पत्थर की बाउंड्री वॉल लगाई जाती है। उसके बाद कतार में पान के बीच की रोपाई की जाती है। पान के बेलों को रस्सी के सहारे जाल पर चढ़ाया जाता है। सिंचाई के लिए किसान अपनी पीठ पर मटका रखकर छिड़काव करता है, जो इस सर्दी के मौसम में बड़ा कठिन काम होता है। किसान सर्दी, गर्मी, बरसात नंगे पैर रहकर पान की देखरेख करता है। निदाई गुड़ाई करता है, सिंचाई करता है। खेत में चप्पल-जूते ले जाना वर्जित रहता है। किसान परिवार इस कड़कड़ाती ठंड में नंगे पैर रहकर पान की खेती करते हैं। ऐसे में उन्हें मेहनत के हिसाब से आय प्राप्त नही होती है।

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