डबरा (बेजोड रत्न ब्यूरो)। राष्ट्र सेविका समिति आतरी खंड के बालिका सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में जिला कार्यवाहीका डॉक्टर अंजलि भार्गव, नगर कार्यवाहिका विनीता गुप्ता, सह नगरकार्यवाहिक जूही गुप्ता, आस्था गुप्ता एवं आंतरी खंड संयोजिका श्रीमती चेतना शर्मा और भावना शर्मा जी भी उपस्थित रही अपने उद्बोधन में डॉक्टर अंजलि भार्गव ने कहा कि पशु और मानव में भेद मानव की संस्कृति व संस्कार के कारण है, अन्यथा दोनों समान ही हैं। वास्तव में देखा जाऐ तो इनके साथ ही वर्तमान में भी मानव जीवन के लिये सबसे ज्यादा जरूरी है तो वह है संयुक्त परिवार। कारण यह है कि संयुक्त परिवार यदि हैं, तो संस्कृति व संस्कार तो स्वत: ही आ जाते हैं।
कुछ वर्षों के अंतराल में मनुष्य में कुछ-न-कुछ बदलाव आये.............
हम परम भाग्यशाली हैं कि हमें मनुष्य जीवन प्राप्त हुआ है जन्म से लेकर मरण तक मनुष्य के सामने अनेकों सम्बन्ध, तरह-तरह की जिम्मेदारियां, विभिन्न परिस्थितियां आदि आती हैं। ईश्वर ने एकमात्र प्राणी ऐसा बनाया, जो इन सभी विषयों को निभाने में सक्षम हैं और वह दूसरा कोई नहीं, वह है 'मनुष्यÓ। कुछ वर्षों के अंतराल में मनुष्य में कुछ-न-कुछ बदलाव आये और साथ में कुछ नई जिम्मेदारियां भी। साथ ही कुछ ऐसे मोड़ आते हैं, जब परिस्थितियां उसे कुछ फैसले लेने के लिए बाध्य कर देती हैं, जो उसकी इच्छा के विरुद्ध होते हैं, तब उसका मन विचिलित रहता है, वह पूरी तरह से प्रसन्न भी नहीं रह पाता। गर्भ में बच्चा पालने का असर सीधा मां पर जाता है........
एक महिला, अपने बच्चे को नौ महीने तक अपने गर्भ में बड़ा करती है और उसके बाद उसे जन्म देती है। इन नौ महीनों की अवधि में वह महिला जो कुछ भी करती है, उसका सीधा असर उसके गर्भ में पल रहे बच्चे पर पड़ता है। इसलिए महिला को गर्भ धारण के पश्चात अपने खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार आदि सभी पर विशेष ध्यान देना चाहिये। पारिवारिक सम्बन्ध में मधुरता भरा व्यवहार करना चाहिए, ईश्वर की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, जिससे होने वाले बच्चे पर अपनी संस्कृति एवं संस्कार की छाप पड़े। महाभारत कथा में उल्लेख है- अभिमन्यु ने अपनी माँ के गर्भ में ही सुनकर युद्धकला सीख ली थी।
यदि हम वंश को नहीं बढ़ाएंगे, तो हमारा समाज विलुप्त होते जाएगा.......
हमारे समाज में भी संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवार लेते जा रहा है, जिसकी संख्या निरंतर बढ़ती जा रही हैं। साथ ही एक ही बच्चे के बाद हम वंश को सीमित करते जा रहे हैं। हम सभी को इस विषय को गंभीरता से लेना चाहिए और इसकी रोक-थाम का प्रयत्न करना चाहिए। यदि हम वंश को नहीं बढ़ाएंगे, तो हमारा समाज विलुप्त होते जाएगा। आज-कल के बच्चों में अपने समाज की संस्कृति और संस्कारों की जानकारी का अभाव दिखाई देता है, जिसका मुख्य कारण है- दादा-दादी के साथ नहीं रहना, माता-पिता दोनों का घर से बाहर जाकर काम करना। कार्यक्रम में आंतरी के सभी विद्यालयों की लगभग 500 बालिकाओं ने भाग लिया।