- पर्यूषण पर्व के सातवें दिन उत्तम तप धर्म पर मुनिश्री के प्रवचन ओर अभिषेक पूजन हुआ

पर्यूषण पर्व के सातवें दिन उत्तम तप धर्म पर मुनिश्री के प्रवचन ओर अभिषेक पूजन हुआ

तन को साधना और मन को बांधना, ये असली उत्तम तप है : मुनिश्री विनय सागर
भिण्ड। उच्च स्थान पाने के लिए तप करना है तो कभी दूसरों के प्रति द्वेष का भाव मत रखना। तन को साधना और मन को बांधना, ये असली उत्तम तप है। दूध को न तपाने से दूध फट जाता है, उसी तरह जीवन में तप के न होने से चेतना-कर्म कलुशता बढ़ जाती है। जैसे सोने को तपाने से वो कुंदन बन जाता है, उसी आत्मा को तपाने से हमारा जीवन निखर जाता है। यह विचार पर्यूषण पर्व के सातवें दिन सोमवार को उत्तम तप धर्म पर श्रमण मुनिश्री विनय सागर महाराज ने लश्कर रोड़ स्थित चातुर्मास स्थल महावीर कीर्ति स्तंभ में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही। मुनिश्री ने कहा कि तप से ही कर्मों की निर्जरा व आत्मा की उन्नति होती है। तप केवल बाहरी ही नहीं अंतरंग भी होता है। हमें उपवास के साथ अंतरंग तप का भी पालन करना चाहिए। तप कर्मों की निर्जला होती है। तप मोक्ष का सबसे बड़ा साधन है। ज्ञान, तप और संयम से मोक्ष की प्राप्ति होती है। तप को अग्नि की तरह कहा गया है। अग्नि में किसी भी पदार्थ की मौलिकता नष्ट नहीं होती। संसार में कोई भी वस्तु तप के माध्यम से ही श्रेष्ठ होती है। वही पर्यूषण पर्व पर शाम को मुनिश्री विनय सागर महाराज के सानिध्य में प्रश्नमंच ,लकी ड्रा के साथ प्रतियोगिता अयोजित की गई। जिसमें विजेताओ को पुरुस्कार वितरण किए गए।
तप की साधना कर किया भगवान जिनेंद्र का अभिषेक ओर शांतिधारा के साथ दीपकों से उतारी आरती
मुनिश्री के मीडिया प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि श्रमण मुनिश्री विनय सागर महाराज ससंघ के सानिध्य में प्रतिष्ठाचार्य पंडित नितेश शास्त्री ने मंत्रो का उच्चारण कर उत्तम तप की साधना कर रहे इन्द्रों ने सिर पर मुकुट ओर पीले वस्त्रों पहनकर कलशो से भगवान जिनेंद्र का अभिषेक जयघोष के साथ किया। मुनिश्री विनय सागर महाराज ने अपने मुख्यबिंद से मंत्रो का उच्चारण भगवान जिनेन्द्र के मस्तक पर बृहद शांतिधारा की। वही महिलाओ ओर पुरुषों ने दीपकों से आरती उतारी।
उत्तम तप की साधना के साथ झूमकर कर भक्ति नृत्य कर पूजन में चढ़ाए महाअर्घ्य।
पर्यूषण पर्व पर श्रमण मुनिश्री विनय सागर महाराज के सानिध्य एव प्रतिष्ठाचार्य पंडित नीतेश शास्त्री मार्ग दर्शन में श्रावक श्राविकाओं ने उत्तम तप की साधना और आरधान कि पूजा अर्चना ओर संगीतमय भजनों की भक्ति में झूमकर भगवान जिनेन्द्र के समझ महाअर्घ्य समर्पित किये।

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