- अस्थाई कर्मचारियों का नियमितिकरण का लाभ देने निर्णय लें

अस्थाई कर्मचारियों का नियमितिकरण का लाभ देने निर्णय लें

नगर निगम के कर्मचारियों की याचिका पर हाईकोर्ट के निर्देश जबलपुर, मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने नगर निगम जबलपुर को निर्देश दिए कि याचिकाकर्ता अस्थाई कर्मचारियों को नियमितिकरण का लाभ देने पर निर्णय लें। जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का मामला सुप्रीम कोर्ट द्वारा २००६ में उमा देवी वाले प्रकरण में दिए फैसले से कवर्ड है। कोर्ट ने उसी न्यायदृष्टांत के आधार पर याचिकाकर्ताआें को भी लाभ देने के निर्देश दिए। जबलपुर निवासी कमलेश प्रसाद द्विवेदी, राम बहोरी त्रिपाठी, विजय श्रीवास्तव व अन्य की ओर से अधिवक्ता वृंदावन तिवारी व कंचन तिवारी ने पक्ष रखा। कोर्ट को बताया गया कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति १९८४ से १९८७ के बीच नगर निगम जबलपुर में अस्थाई कर्मचारियों के रूप में हुई थी। दलील दी गई कि याचिकाकर्ताओं से कनिष्ठ कई ऐसे कर्मचारी हैं, जिन्हें नियमितिकरण का लाभ दे दिया गया है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के २००६ के उमा देवी प्रकरण का हवाला भी दिया गया, जिसमें नियमितिकरण के लिए दिशा निर्देश दिए गए हैं। इसके बाद मप्र हाईकोर्ट ने भी ११ अप्रैल २०२२ को नगर निगम कर्मचारियों को नियमितिकरण का लाभ देने के स्पष्ट निर्देश दिए हैं। सुनवाई के बाद एकलपीठ ने उक्त दोनों प्रकरणों के फैसले की रोशनी में याचिकाकर्ताओं के मामले पर विचार कर उचित निर्णय पारित करने के आदेश दिए। विलंब से वेतन देने पर ब्याज का भुगतान करने निर्देश... ............ मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने वेतन का भुगतान करने में देरी पर सख्ती बरतते हुए १० फीसदी ब्याज का भुगतान करने के निर्देश दिए। जस्टिस शील नागू की एकलपीठ ने कहा कि राज्य शासन ६० दिन के भीतर वेतन का ब्याज जोड़कर उसका भुगतान सुनिश्चित करें। कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा िक याचिकाकर्ता को ऐसे मुद्दे के लिए बेवजह कोर्ट के दरवाजे खटखटाने पड़े, जिसे पहले ही निपटाया जा सकता था। ऐसे मामलों से कोर्ट का अमूल्य समय बर्बाद होता है, जिनमें वह कई अन्य महत्वपूर्ण प्रकरणों का निराकरण कर सकती है। इस मत के साथ कोर्ट ने सरकार पर ५ हजार रुपए की कॉस्ट भी लगाई। कोर्ट ने कॉस्ट की राशि डिजिटल माध्यम से याचिकाकर्ता के अकाउंट में ट्रांसफर करने के निर्देश दिए। जबलपुर निवासी अशोक कुमार गुप्ता की ओर से अधिवक्ता प्रभात असाटी ने पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता ने दिसबंर २०१८ से फरवरी २०१९ तक डीएन जैन कॉलेज में लाइब्रेरियन के पद पर कार्य किया। इस अवधि का उन्हें वेतन भुगतान नहीं किया गया। कॉलेज प्रशासन की ओर से जवाब में वेतन भुगतान की शीट पेश की गई। उसका अवलोकन करने पर कोर्ट ने पाया कि कई महीनों का वेतन भुगतान में देरी की गई है।

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