पिछले 20 सालों से बिहार की राजनीति नीतीश कुमार के हाथों में रही है और इतने लंबे शासन के बाद सत्ता-विरोधी लहर का उभरना स्वाभाविक है। हालाँकि, एनडीए के चुनावी शिल्पकारों ने अपनी दमदार रणनीति से चुनावी परिदृश्य को बदल दिया।
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे अप्रत्याशित थे। एनडीए की सुनामी ने महागठबंधन को हिलाकर रख दिया है। महागठबंधन के कई वरिष्ठ नेता स्तब्ध हैं और इस करारी हार के सदमे से उबर नहीं पा रहे हैं। महागठबंधन का शीर्ष नेतृत्व सत्ता-विरोधी लहर पर सवार होकर चुनावी सफलता हासिल करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उन्हें इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि यह नाव डूबने वाली है। मोदी और नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए ने सत्ता-विरोधी लहर के मिथक को तोड़ दिया। एनडीए ने विधानसभा की 243 में से 202 सीटें जीतकर चुनावी अनुमानों से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया। इस सुनामी ने महागठबंधन को 35 सीटों पर समेट दिया, जबकि अन्य को केवल 6 सीटें मिलीं।
क्या एनडीए के चुनावी शिल्पकारों ने कोई कमाल कर दिखाया?
दरअसल, बिहार की राजनीति पिछले 20 सालों से नीतीश कुमार के हाथों में रही है, और इतने लंबे कार्यकाल के बाद सत्ता-विरोधी लहर का उभरना स्वाभाविक है। चार कार्यकाल पूरे कर चुकी सरकार के लिए सत्ता में वापसी करना अक्सर मुश्किल होता है। महागठबंधन भी इसका फायदा उठाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन एनडीए के चुनावी रणबांकुरों ने अपनी मज़बूत रणनीति से साबित कर दिया कि सत्ता-विरोधी लहर सरकार के खिलाफ नहीं, बल्कि सरकार में जनता के विश्वास का जनादेश है।
इन योजनाओं ने बदल दी तस्वीर
चुनाव से पहले नीतीश कुमार ने महिलाओं, बुज़ुर्गों और ग्रामीण गरीबों को ध्यान में रखते हुए कई योजनाएँ शुरू कीं। इनमें रोज़गार या घर-आधारित उद्योग शुरू करने के लिए महिलाओं के खातों में ₹10,000 ट्रांसफर करना, सभी के लिए 125 यूनिट तक मुफ़्त बिजली और वृद्धावस्था पेंशन ₹400 से बढ़ाकर ₹1,100 करना शामिल था। महिलाओं के लिए उद्यम योजना के तहत, बिहार सरकार ने चुनाव से ठीक एक महीने पहले 1.21 करोड़ महिलाओं के खातों में ₹10,000 ट्रांसफर किए। राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि एनडीए सरकार के इस प्रयास ने चुनावी माहौल बदलने में अहम भूमिका निभाई।
जनसुराज ने ज़मीनी मुद्दे उठाए
पहली बार चुनाव लड़ रही प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी ने ज़रूर कुछ ज़मीनी मुद्दे उठाए और मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की। जनसुराज ने युवाओं के मुद्दों, खासकर बेरोज़गारी और पलायन को उठाकर सत्ता-विरोधी लहर पैदा करने की कोशिश की। जनसुराज अपने पहले प्रयास में भी विफल रहा।
जंगलराज (जंगलराज) राजद को परेशान करता रहा
महागठबंधन में शामिल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) जैसे प्रमुख राजनीतिक दलों ने भी सत्ता-विरोधी लहर का फायदा उठाने की कोशिश की, लेकिन एनडीए ने तेजस्वी को बार-बार जंगलराज की याद दिलाई, जिससे तेजस्वी के प्रयास विफल हो गए। इस बीच, महागठबंधन में तेजस्वी की सहयोगी कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। बिहार में राहुल गांधी के मताधिकार अभियान के बावजूद, पार्टी सिर्फ़ छह सीटों पर सिमट गई। राहुल गांधी ने अपने चुनाव अभियान को लगातार वोट चोरी के आरोपों पर केंद्रित रखा।
महागठबंधन में समन्वय की कमी
इस चुनाव में महागठबंधन के सहयोगियों के बीच समन्वय की भारी कमी देखी गई, जिसका एनडीए ने भरपूर फ़ायदा उठाया। नामांकन की आखिरी तारीख़ तक, सीटों के बंटवारे पर आम सहमति नहीं बन पाई। महागठबंधन के दलों ने लगभग 11 सीटों पर दोस्ताना मुक़ाबला लड़ा, जिससे मतदाताओं में सकारात्मक संदेश नहीं गया और इसका फ़ायदा एनडीए को हुआ। दूसरी ओर, एनडीए इस मामले में काफ़ी अनुशासित दिखाई दिया और किसी भी तरह की दोस्ताना लड़ाई को रोका। गठबंधन के नेताओं के बीच बेहतरीन समन्वय ने जनता में एक सकारात्मक संदेश दिया। ये प्रयास चुनाव परिणामों में साफ़ दिखाई दे रहे हैं।