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लिंगायतों के गढ़ में बीजेपी के लिए मुश्किल लड़ाई, वीरशैव फोरम ने कांग्रेस को दिया समर्थन
बैंगलुरु। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों का प्रचार-प्रसार जोरों पर है और सभी दल राज्य के मतदाताओं के साथ-साथ वहां के लिंगायत समुदाय को भी अपने पक्ष में करने कोशिश कर रहे हैं। रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बैंगलुरु में मेगा रोड-शो चल रहा है, तो वहीं कर्नाटक के वीरशैव लिंगायत फोरम ने 10 मई को होने वाले कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अपना समर्थन देने के लिए एक आधिकारिक पत्र जारी किया। फोरम ने लिंगायत समुदाय के लोगों से कांग्रेस को वोट देने का आग्रह किया है।
बीते 5 मई को कांग्रेस नेता शमनूर शिवशंकरप्पा और जगदीश शेट्टार ने कर्नाटक के हुबली में लिंगायत संतों से मुलाकात भी की थी। प्रभावशाली लिंगायत या वीरशैव-लिंगायत समुदाय का महत्व बेहद अहम है, क्योंकि कर्नाटक चुनाव के नतीजे तय करने में इस समुदाय की भूमिका प्रमुख होती है और यही वजह है कि हर दल उसे लुभाने की कोशिशों में जुटा है। कहा जाता है कि कर्नाटक की आबादी में लगभग 17 प्रतिशत लिंगायत हैं और कुल 224 निर्वाचन क्षेत्रों में से 100 में इनका प्रभुत्व है। इनमें से अधिकतर सीटें उत्तरी कर्नाटक क्षेत्र की हैं।
वर्तमान विधानसभा में सभी दलों के 54 लिंगायत विधायक हैं, जिनमें से 37 सत्तारूढ़ भाजपा के हैं। इसके अलावा 1952 के बाद से कर्नाटक के 23 मुख्यमंत्रियों में से 10 लिंगायत रहे हैं, इसके बाद छह वोक्कालिगा, पांच पिछड़ा वर्ग से और दो ब्राह्मण। आगामी 10 मई को होने वाले मतदान में जीत के लिए लिंगायतों का समर्थन हासिल करना कितना महत्वपूर्ण है, यह इसी से समझा जा सकता है कि सभी राजनीतिक दल इस प्रभावशाली समुदाय को लुभाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं।राज्य भर में कई लिंगायत मठ राजनीतिक रूप से प्रभावशाली हैं। एक अन्य कारक समुदाय के भीतर विभिन्न उप-जातियां हैं। बनजिगा (जिससे येदियुरप्पा संबंधित हैं), सदर (बोम्मई की उपजाति), गनिगा और पंचमसाली लिंगायत राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लिंगायतों में संख्या के लिहाज से उच्च माने जाने वाले पंचमसालियों ने अपने संत बसव जया मृत्युंजय स्वामीजी के नेतृत्व में हाल ही में रोजगार और शिक्षा में उच्च आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन किया था, जिसने विधानसभा चुनावों से पहले सत्तारूढ़ भाजपा सरकार को मुश्किल में डाल दिया था, क्योंकि उन्होंने धमकी दी थी कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं की गईं तो उन्हें चुनावी परिणाम भुगतने होंगे। उन्हें साधने के उद्देश्य से सरकार ने हाल ही में राज्य की ओबीसी सूची के तहत लिंगायतों के लिए कोटा दो प्रतिशत बढ़ाने का फैसला किया है। कर्नाटक में आगामी 10 मई को वोट डाले जाएंगे, जबकि 13 मई को मतगणना होगी।
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