- मझधार में फंसी दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मिली जीवनदायिनी सांसें

नई दिल्ली। पहले स्वास्थ्य मंत्री की गिरफ्तारी, फिर सरकार की रीढ़ माने जाने वाले डिप्टी सीएम का सलाखों के पीछे जाना और लगातार सरकार की फाइलें रोके जाना। ये वो घटनाएं थीं, जिनसे शिक्षा और स्वास्थ्य के बूते छाती ठोंकने वाली आम आदमी पार्टी पॉलिशी क्राइसिस वाले मोड में चली गई थी। स्वीपिंग मैजोरिटी के साथ सरकार बनाने वाली इस पार्टी के एक तिहाई मंjavascript:nicTemp();त्री फिलहाल जेल में हैं। वहीं कैलाश गहलोत समेत कई नेता अलग-अलग मामलों के चलते जांच दायरे में हैं। उपराज्यपाल के एक्शन से दिल्ली सरकार के कार्यों की फाइलें पहले ही अटकी हुई थीं। कम शब्दों में ज्यादा कहें तो दिल्ली सरकार का काम पूरी तरह ठप था और नित नए विवाद दिल्ली में इस पार्टी के राजनीतिक रसूख को खत्म करने पर आमादा थे। लेकिन गुरुवार को 5 जजों की सुप्रीम बैंच ने एक फैसला दिया तो सुस्त और कमजोर पड़ी दिल्ली सरकार में फिर से नई जान आ गई। अब दिल्ली की सरकार के पास वो सबसे बड़ा ‘हथियार’ आ गया है, जिसके बूते इस केंद्र शासित राज्य में फिर से उसका सिक्का जम सकता है। अब तक चपरासी का ट्रांसफर न कर पाने की क्षमता वाली ये सरकार प्रधान सचिव तक की अदला-बदली कर सकती है। लॉ ऑर्डर, पुलिस और लैंड से जुड़े मसलों के अलावा उपराज्यपाल दिल्ली सरकार द्वारा भेजी किसी फाइल को यूं ही लौटा या दबा नहीं सकते हैं। अपनी बेहतरीन शिक्षा व्यवस्था का हवाला देने वाली इस सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि ये लापरवाही बरतने वाले किसी भी शिक्षक का ट्रांसफर तक नहीं कर सकते थे और न ही कोई एक्शन उनके खिलाफ ले सकते थे। नतीजा ये रहा कि अधिकारियों में इनका कोई खौफ नहीं बचा। अधिकारी हर एक्शन के लिए मुख्य सचिव और उपराज्यपाल की ओर ताकते थे। कुछ अधिकारियों ने तो शातिराना अंदाज से काम किया और निकल भी गए। पॉलिसी बनाना तो सरकार के हाथ में था, लेकिन उसको धरातल पर क्रियान्वयन में उतारना इन्हीं अधिकारियों के जिम्मे। ऐसे में सरकार की नीतियां जैसी भी रही हों, लेकिन उनका क्रियान्वयन धरातल पर नहीं हो रहा था। कई बार इसके चलते सरकार और अधिकारियों के बीच तकरार की खबरें भी आईं। मोहल्ला क्लीनिक में डॉक्टरों की तन्ख्वाह और दवाई कंपनियों के भुगतान को रोके जाने पर विधायक सौरभ भारद्वाज की अधिकारियों से बहस सुर्खियों में रही थी।

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