- कांग्रेस में सीएम चेहरे के लिए कांग्रेस आलाकमान का निर्णय अंतिम

कर्नाटक में भी कांग्रेस ऐसा ही कुछ करने वाली 
नई दिल्ली। कर्नाटक विधानसभा चुनाव खत्म हो चुके हैं। अब सवाल मुख्यमंत्री चुनने का है। कहा जा रहा है कि पद को लेकर प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार और पूर्व सीएम सिद्धारमैया के नाम पर मंथन जारी है। हालांकि, यह पहली बार या पहला राज्य नहीं है, जहां कांग्रेस इसतहर के बड़े सवाल से घिरी नजर आ रही हो। 2018 का अंत आते-आते भी इसी तरह की स्थिति तैयार हुई कांग्रेस मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में धर्मसंकट में नजर आई। हालांकि, 2018 के बाद भी एक बात साफ हो गई थी कि राज्य में कोई भी नेता कितना भी मजबूत हो, कमान हमेशा दिल्ली आलाकमान के हाथों में ही रहती है। कर्नाटक की स्थित पर भी सोमवार को दिल्ली में मंथन जारी है। रविवार को सभी विधायकों की राय एक बॉक्स में बंद हो चुकी है। साथ ही विधायक ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को मुख्यमंत्री चुनने का अधिकार भी दे दिया है।
कहा जाता है कि राजस्थान विधानसभा चुनाव के बाद सचिन पायलट ही सीएम पद के लिए राहुल गांधी की पसंद थे। खबरें हैं कि तब राहुल को समझाया गया कि 2019 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अशोक गहलोत जैसे वरिष्ठ नेता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। फिर बात आती है मध्य प्रदेश की, दिल्ली का नेता कहलाने वाले कमलनाथ के नाम के चुनाव में पार्टी को खास मुश्किल नहीं उठानी पड़ी।
कहा जाता है कि इसकी वजह पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह का तस्वीर से खुद को बाहर कर लेना था। हालांकि, करीब डेढ़ साल बाद ही ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बगावत की और विधायकों के साथ भाजपा का दामन थाम लिया। नतीजा हुआ कि राज्य में कमलनाथ सरकार गिर गई।
छत्तीसगढ़ में भी दौड़ में टीएस सिंह देव, तामराजदास साहू, चरणदास महंत और भूपेश बघेल थे। इसमें तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष बघेल का पलड़ा भारी नजर आ रहा था। अंत में कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें ही सीएम का दायित्व सौंपा। हालांकि, इस दौरान स्वास्थ्य मंत्री देव और बघेल के बीच खींचतान की खबरें भी सामने आईं।
तीनों राज्यों की स्थिति देखने पर कह सकते हैं कि कांग्रेस में केवल विधायकों का समर्थन ही नहीं, बल्कि आलाकमान की मर्जी भी चलती है। जानकार बताते हैं कि ऐसा राज्य की राजनीति पर पकड़ रखने के लिए किया जाता है। आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के ताकतवर नेता वाईएसआर के निधन के बाद कांग्रेस की प्रदेश पर पकड़ कमजोर होती नजर आई थी। इसके अलावा अगर मुख्यमंत्री ही हटा दिया जाए, तब भी पार्टी परेशानी में नहीं पड़ती।
बड़ी संभावनाएं हैं कि सिद्धारमैया को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वहीं, पार्टी के बड़े संकटमोचक के रूप में उभरे डीके शिवकुमार भी बड़ी उम्मीद लगाए हैं। हालांकि, यह साफ है कि विधायकों की राय के बाद भी आखिरी फैसला आलाकमान के हाथों में होगा। इसका उदाहरण कांग्रेस हिमाचल प्रदेश में दे चुकी है, जहां प्रतिभा सिंह को मिले भारी समर्थन के बाद कांग्रेस ने सुखविंदर सिंह सुक्खू को सीएम बनाया।


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