- बिहार ने जातिवाद की बेड़ियां तोड़ दी हैं; अब सुशासन और विकास बिहार के लोगों की नई "जाति" है।

बिहार ने जातिवाद की बेड़ियां तोड़ दी हैं; अब सुशासन और विकास बिहार के लोगों की नई

बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने देश को जातिवाद की बेड़ियों से भी आज़ाद कर दिया है। इस बार बिहार के मतदाताओं ने विकास, सुशासन, राष्ट्रवाद और बेहतर भविष्य के लिए वोट दिया।

विधानसभा चुनाव के नतीजों ने बिहार की राजनीति में एक ऐतिहासिक मोड़ ला दिया है, जिसने न केवल नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए को भारी जीत दिलाई, बल्कि जातिवाद की बेड़ियों को भी तोड़ दिया। इसके साथ ही, सुशासन और विकास बिहारियों की नई "जाति" बन गए हैं। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, एनडीए ने 243 सीटों वाली विधानसभा में 200 से ज़्यादा सीटें हासिल कीं और दो-तिहाई बहुमत हासिल करते हुए विपक्ष को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया।

महागठबंधन सिर्फ़ 35 सीटों पर अटका
बिहार विधानसभा चुनाव में महिलाओं और युवाओं ने सुशासन और विकास के लिए भारी मतदान किया। इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महागठबंधन सिर्फ़ 35 सीटों पर सिमट गया। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, उसे सिर्फ़ 38 प्रतिशत वोट मिले। यह जीत जातिगत समीकरणों से ऊपर उठकर विकास की एक नई कहानी कहती है।

प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों ने हर जाति का दिल जीत लिया।
बिहार, जहाँ पहले चुनाव परिणाम जाति के आधार पर तय होते थे, पहली बार जाति के बंधनों से मुक्त हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विकासवादी और राष्ट्रवादी नीतियों ने सभी जातियों का दिल जीत लिया। नीतीश कुमार की सुशासन की छवि ने एनडीए को बिहार में भारी जीत दिलाई। पारंपरिक रूप से जाति-आधारित राज्य रहे बिहार में, मतदाताओं ने नीतीश-मोदी (नीमो) को प्राथमिकता दी। विशेषज्ञों के अनुसार, अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी), दलित और गैर-यादव मतदाताओं का व्यापक गठबंधन एनडीए की सफलता की कुंजी रहा। महिलाओं की रिकॉर्ड भागीदारी ने भी महागठबंधन का संतुलन बिगाड़ दिया। पहले चरण में 69 प्रतिशत और दूसरे चरण में 74 प्रतिशत मतदान हुआ।

बिहार ने जंगलराज के खिलाफ मतदान किया
इस बार बिहार की महिलाओं और युवाओं ने जंगलराज के खिलाफ, विकास और सुशासन के लिए एकजुट होकर मतदान किया। सभी जातियों के लोगों ने एनडीए के विकास और सुशासन में अपना भविष्य देखा। इस प्रकार, लंबे समय के बाद बिहार में जातिगत समीकरण ध्वस्त हो गए। यही वजह है कि एनडीए ने इस चुनाव में शानदार प्रदर्शन करते हुए 200 से ज़्यादा सीटें जीतीं, जबकि महागठबंधन सिर्फ़ 35 सीटों पर सिमट गया।

एनडीए ने मुद्दों पर करारा प्रहार किया।
एनडीए ने "जंगल राज" के ख़िलाफ़ अपने अभियान में क़ानून-व्यवस्था, शराबबंदी और महिला सशक्तिकरण को अपना मुख्य हथियार बनाया। इसने पारदर्शी प्रशासन, ग्रामीण संपर्क, सामाजिक कल्याण और सर्वांगीण विकास को भी मज़बूत किया। एनडीए ने सड़क नेटवर्क के विस्तार, हवाई अड्डों के निर्माण, नई ट्रेनों की शुरुआत, बिजली की पहुँच का विस्तार और शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी को दोगुना करने का भी फ़ायदा उठाया। नतीजतन, एनडीए सभी जातियों का दिल जीतने में कामयाब रहा।

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