एम्स भोपाल के डॉ. गौरव चतुर्वेदी ने शरीर में दो अलग-अलग आकार की नसों को जोड़ने का एक नया तरीका निकाला है। उन्होंने रक्त वाहिकाओं को जोड़ने की इस तकनीक को इंटरप्टेड हॉरिजॉन्टल माइक्रोमैट्रेस शटरिंग नाम दिया है। इसके जरिए बड़ी और छोटी नसों को बहुत आसानी से आपस में जोड़ा जा सकता है।
अगर किसी मरीज का पैर जल जाए तो हड्डी तक का मांस काला पड़ जाता है। उस हड्डी को ढकने के लिए शरीर के किसी दूसरे हिस्से से मांस को ग्राफ्ट किया जाता है। मांस को जिंदा रखने के लिए खून की नस को भी काट दिया जाता है। और पैर को ही हड्डी पर ग्राफ्ट कर दिया जाता है।
इस प्रक्रिया में कई बार खून की नसें अलग-अलग साइज की होती हैं, जिससे जुड़ने में दिक्कत आती है। क्योंकि वो नसें छोटी-बड़ी होती हैं, जिससे जुड़ने में दिक्कत आती है, ऐसी स्थिति से निपटने के लिए एम्स भोपाल के डॉ. गौरव चतुर्वेदी ने इनोवेशन किया है।
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उन्होंने रक्त वाहिकाओं को सिलने की एक नई तकनीक विकसित की है, जिसका नाम इंटरप्टेड हॉरिजॉन्टल माइक्रोमैट्रेस शटरिंग है। इसकी मदद से किसी भी छोटी या बड़ी रक्त वाहिकाओं को आसानी से जोड़ा जा सकता है। इससे सर्जरी के बाद नसों से खून बहने की समस्या दूर हो जाएगी।
दरअसल, प्लास्टिक सर्जरी में शरीर के एक हिस्से से त्वचा और ऊतक लेकर दूसरे हिस्से में लगाना होता है। हर हिस्से की रक्त वाहिकाओं का आकार अलग-अलग होता है। यह तकनीक उन्हें जोड़ने की समस्या से राहत दिलाती है।
डॉ. गौरव का यह नवाचार देशभर में भी लोकप्रिय हो गया है। हाल ही में डॉ. गौरव को माइक्रोसर्जिकल सिवनी तकनीक पर उनके अग्रणी कार्य के लिए प्रतिष्ठित यंग रिसर्चर अवार्ड से सम्मानित किया गया।
यह सम्मान उन्हें राष्ट्रीय बायोमेडिकल रिसर्च प्रतियोगिता के दौरान दिया गया, जिसका आयोजन एम्स, नई दिल्ली ने सोसाइटी ऑफ यंग बायोमेडिकल साइंसेज इंडिया के तत्वावधान में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सहयोग से किया था। इस आयोजन में देशभर से आए शोधकर्ताओं ने अपनी उन्नत खोजों को प्रस्तुत किया।
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एम्स भोपाल के बर्न एवं प्लास्टिक सर्जरी विभाग के डॉ. गौरव चतुर्वेदी ने बताया कि वर्तमान में ऑपरेशन के दौरान दो रक्त वाहिकाओं को जोड़ने में दिक्कत आती है। कई बार नसें फट जाती हैं। उनमें रिसाव होने लगता है।
हालांकि इस पर काफी शोध चल रहा है, लेकिन अपने इनोवेशन की मदद से मैंने 30 सफल ऑपरेशन किए हैं। जिसमें सभी मरीज स्वस्थ हैं। इस इनोवेशन को पूरा करने में मुझे दो साल लगे।
यह पुरस्कार चिकित्सा अनुसंधान में नवाचार और उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए एम्स भोपाल की प्रतिबद्धता का प्रमाण है। डॉ. चतुर्वेदी के काम से न केवल हमारे संस्थान की प्रतिष्ठा बढ़ती है बल्कि यह भी पता चलता है कि उन्नत शोध रोगी देखभाल को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकता है। - प्रो. डॉ. अजय सिंह, कार्यकारी निदेशक, एम्स भोपाल