जबलपुर, रेलवे ने उत्तर और दक्षिण भारत के बीच रेल संपर्क बढ़ाने के लिए जबलपुर-गोंदिया होकर सबसे कम दूरी का रेलमार्ग बनाया। २३८ किलोमीटर के जबलपुर-गोंदिया अमान परिवर्तन के कार्य की धीमी गति के कारण इस महत्वपूर्ण परियोजना को पूरा होने में २१ वर्ष लगे थे। अब रेलपथ दोहरीकरण योजना की चाल थमी हुई है। जिससे उत्तर-दक्षिण के बीच ट्रेन यातायात बढ़ाने पर अड़ंगा लग गया है। कार्य की धीमी गति के चलते जबलपुर को दक्षिण से सीधे जोड़ने का सपना आज भी अधूरा बना हुआ है। गौरतलब है कि १९९८ में नैरोगेज से ब्राडगेज बनाने का कार्य आरंभ हुआ था, जो करीब २१ साल बाद वर्ष २०२० में पूर्ण हो पाया। जिसके बाद साल २०२१ में इस मार्ग से पहली बार गया-चेन्नई एक्सप्रेस चली। आज की तारीख तक इस मार्ग पर कुल तीन टे्रनें हैं जो दक्षिण भारत तक जाती है। इसमें भी एक अल्पकालीन समर स्पेशल टे्रन है। बताया जा रहा ह कि रेलपथ दोहरीकरण का कार्य पूरा होने के बाद ही यह मार्ग सौ फीसद इस्तेमाल हो पाएगा। लेकिन गति से रेलपथ दोहरीकरण की फाईल आगे बढ़ रही है। उससे यही लग रहा है कि सालों का इंतेजार बाकी है। देशभर को मिलेगा फायदा....... प्रयागराज, लखनऊ, कानपुर, बनारस, दीनदयाल उपाध्याय, पटना जैसे शहरों से आकर जबलपुर के रास्ते चेन्नई, बैंगलुरू, सिकंदराबाद, विजयवाड़ा जाने वाली ट्रेनें अभी अपेक्षाकृत लंबे पथ से होकर चल रही है। जबलपुर-गोंदिया-बल्लारशाह छोटे रेलमार्ग से ट्रेन चलने से यात्रियों को किराया भी कम लगेगा। इस रेलपथ के दोहरीकरण से छत्तीसगढ़ के रायपुर, दुर्ग, ओडिशा के विशाखापट्टनम, महाराष्ट्र के नागभीड़, वडसा जैसे शहरों तक रेल आवाजाही की सुविधा भी सुलभ होगी। दक्षिण भारत से नई दिल्ली के बीच ट्रेनों के संचालन के लिए भी एक वैकल्पिक रेलपथ उपलब्ध होगी।