- बच्चों में सामाजिक गुणों का विकास भी जरुरी

पढाई के साथ ही बच्चों के सपूर्ण विकास के लिए उनमें सामाजिक गुणों का विकास भी जरुरी है।
बच्चे को सामाजिक बनाने के लिए बातचीत की कला और भावनात्मक संयम की ज़रूरत होती है। इन गुणों को विकसित करने की ज़िम्मेदारी अभिभावकों की होती है पर अभिभावकों के सामने अहम् समस्या यह होती है कि इन गुणों को किस तरह से विकसित किया जाए? हम यहां पर कुछ ऐसी ही महत्वपूर्ण बातें बता रहे हैं जिन्हें ध्यान में रखकर आप अपने बच्चे को सक्रिय बना सकते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार बच्चे जन्म से ही सामाजिक होते हैं। उनमें प्राकृतिक रूप से सामाजिक होने का गुण होता है इसलिए उनका सबसे पहला सामाजिक जुड़ाव अपने माता-पिता से होता है जो उनके लिए इमोशनल कोच की भूमिका अदा करते हैं। यही भावनात्मक जुड़ाव बच्चों में भावनात्मक संयम और बातचीत करने की कला विकसित करती है जो उन्हें सोशल बनाने में मदद करती है। इसलिए शुरुआत जल्दी करें।
बच्चों को अलग-अलग तरह से खेलों में शामिल करें। वहां पर आपका बच्चा अपने हमउम्र बच्चों के साथ आरामेद महसूस करेगा। इन खेलों के जरिये बच्चा दूसरे बच्चों के साथ उसका जुड़ेगा। इस दौरान वह अपने को स्वतंत्र महसूस करेगा जिसके कारण बच्चे का सामाजिक विकास तेज़ी से होगा।
आउटडोर गेम्स पर दें जोर
बच्चे को खिलौनों में व्यस्त रखने की बजाय आउटडोर गेम्स खेलने के लिए प्रोत्साहित करें। आउटडोर गेम्स खेलते हुए वह अन्य बच्चों के संपर्क में आएगा और नई-नई बातें सीखेगा जिससे बच्चे के सामाजिक और मानसिक विकास में वृद्धि होगी।
शेयरिंग की आदत डालें
खेलों के दौरान अपने बच्चे को खिलौने या फूड आइटम्स आदि चीज़ों को शेयर करने को कहें। उसे साझा करने का महत्व समझाएं।
शिष्टाचार सिखायें
बच्चों को एक्टिविटीज़ में व्यस्त रखने के साथ-साथ ‘प्लीज़’ ‘सॉरी’ और ‘थैंक्यू’ जैसे बेसिक मैनर्स और एटीकेट्स भी सिखाएं। पार्टनर्स जिस तरह से आपस में बातचीत करते हैं बच्चे भी अपने फ्रेंड्स के साथ उसी तरी़के से बात करते हैं।
शोधों में भी यह बात साबित हुई है कि जो अभिभावक अपने बच्चों के साथ बहुत अधिक बातचीत और विचारों का आदान-प्रदान करते हैं उन बच्चों का सामाजिक विकास तेज़ी से होता है। समय के साथ-साथ उन बच्चों में बेहतर बातचीत करने की कला भी विकसित होती है। अभिभावकों को भी चाहिए कि वे बच्चों के साथ हमेशा आई-कॉन्टैक्ट करते हुए बातचीत करें। जब भी बच्चे दूसरे लोगों से बातें करें तो उनकी बातों को ध्यान से सुनें।
सबसे पहला और महत्वपूर्ण काम है कि वे बच्चे में नकारात्मकता को हावी न होने दें। बच्चे के साथ बातचीत करते हुए उसके विचारों व इच्छाओं को जानने का प्रयास करें और उसकी भावनाओं की कद्र करें।
किशोर उम्र के बच्चों पर पैनी नज़र रखें लेकिन हर समय उनके आसपास मंडराने की कोशिश न करें। बच्चों को भी स्पेस की ज़रूरत होती है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनमें समझदारी भी आने लगती है। ज़्यादा रोक-टोक करने की बजाय उन्हें अपने निर्णय लेने दें बल्कि निर्णय लेने में उनकी मदद भी करें। जो अभिभावक अपने बच्चों के आसपास मंडराते रहते हैं वे अपने बच्चों में सामाजिक कौशल को विकसित नहीं होने देते।
जिन अभिभावकों के पैरेंटिंग स्टाइल में नियंत्रण अधिक और प्यार कम होता है उनके बच्चे अधिक सोशल नहीं होते। अध्ययनों से यह साबित हुआ है कि जो पैरेंट्स दबंग क़िस्म के होते हैं उनके बच्चों का स्वभाव अंतर्मुखी होता है और इनके दोस्त भी बहुत कम होते हैं। ऐसे अभिभावक अपने बच्चे को बातचीत के दौरान हतोत्साहित करते हैं।समय के साथ-साथ ऐसे बच्चे अनुशासनहीन विद्रोही और अधिक आक्रामक हो जाते हैं।
समय-समय पर बच्चे के दोस्तों के बारे में पूरी जानकारी रखें ताकि वह गलत संगत में न पड़े।
बाहरी लोगों को समझने की कला विकसित करें ताकि वह धोखेबाजी का शिकार न हो।




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