- वर्तमान में कल्पवृक्ष पुरूषार्थ ही है - मुनिश्री निर्बुद्ध सागर महाराज

वर्तमान में कल्पवृक्ष पुरूषार्थ ही है -  मुनिश्री निर्बुद्ध सागर महाराज

भोपाल। आप जैसा करना चाहते हो वैसा होता नहीं है और जैसा चाहते हैं वैसा करते नहीं है। जैसे आकाश का छोर नहीं है, वैसे ही आपका कर्तत्व का भी छोर नहीं है। कल्पवृक्ष और कुछ नहीं वर्तमान में आपका पुरूषार्थ ही कल्पवृक्ष है। यह उद्गार आचार्य सुनील सागर जी के शिष्य मुनि निर्बुद्ध सागरजी  महाराज  ने  चौक धर्मशाला में  धर्मसभा में व्यक्त करते हुए कहा। जैसा मिला, वैसा स्वीकार करना यह पशुओं की जीवनशैली है।


 आप मनुष्य योनि में अनन्त भवों के बाद आये हैं। आपको सही दिशा में सकारात्मक विचारों के साथ पुरूषार्थ करके जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता हासिल करनी होगी। सिद्धांत तो आगम में मिलते हैं, पर व्यवस्था निर्माण करनी पड़ती है। जैसा पुरूषार्थ होगा, वैसा ही जीवन होगा और वैसी ही जीवनशैली होगी। किसी भी मामले में कुछ भी हो जाये, हार नहीं मानूंगा। सदैव अन्तस में दया, करूणा और सरल भावों के साथ सहयोग की भावना को लेकर कार्य करता रहूँगा।


 यह सोच वाला व्यक्ति ही सही अर्थों में महावीर का भक्त है। मन वचन काय की शुद्धि के साथ भावों की शुद्धि भी आवश्यक है। दिगंबर  जैन  पंचायत  कमेटी  ट्रस्ट  के  मंत्री  मनोज आर एम ने  बताया  धर्म  सभा  में  आचार्यश्री विद्या सागर जी  महाराज, आचार्य विशुद्ध सागर महाराज, आचार्य सुनील सागर महाराज के  गुणों  की  वंदना  की  गई। इसके पूर्व मुनि निर्बुद्ध, मुनि संविज्ञ सागर महाराज मंगलवारा जिनालय से  पद विहार कर  चौक  जिनालय  पहुंचे। 


यहॉ मुनि संघ की अगवानी की  गई  और  मुनि संघ ने चौक जिनालय की वंदना की।  इस अवसर पर ट्रस्ट के मंत्री मनोज आर एम, विपिन एम पी टी, ऋषभ जैन, सर्वज्ञ जैन, विशुद्ध, प्रदीप,  कुट्टू, अरविंद जैन, पुलकित जैन, रजत जैन, पिंटू बांगा, पारस जैन सहित अनेक धर्मावलंबी मौजूद थे। 


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