- संत और गुरु रास्ता बताते हैं, चलना तो हमें ही पड़ेगा : पं. भारद्वाज

संत और गुरु रास्ता बताते हैं, चलना तो हमें ही पड़ेगा : पं. भारद्वाज

भिण्ड/मेहगांव। दंदरौआ धाम परिसर में प्रवचन हो रहे हैं । कागभुसुंडि के चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान भक्त में कभी अभिमान नहीं रहने देते क्योंकि भगवान अपने भक्तों का अभिमान हर लेते हैं बिना विश्वास के भक्ति नहीं होती है। संत कृपा होती है तो मनुष्य भक्ति प्राप्त कर सकता है लेकिन संत और सद्गुरु भक्ति का मार्ग बता सकते हैं लेकिन चलना तो शिष्य को ही पड़ेगा। यह उद्गार ग्रस्त संत पंडित रामेश्वर दयाल भारद्वाज रामायणी ने दंदरौआ धाम परिसर में आयोजन चल रहा है।
उन्होंने कहा कि गुरु रास्ता बताते हैं किंतु शिष्य को ही चलना पड़ता है। भक्ति के लिए हमेशा छोटा बनकर रहो क्योंकि भक्ति के दरबार में उसी को प्राथमिकता मिलती है जो सबसे छोटा होता है, दीन होता है। भक्त की पहचान यही होती है कि वह अपने को कभी बड़ा नहीं समझता। साधक अगर भक्ति के करीब पहुंच जाए तो उसे ज्यादा समय तक विचार नहीं करना चाहिए वरना कोई ऐसी घटना घटती है जिससे कि आप भक्ति से दूर हो जाते हैं, इसलिए बिना विचारे भक्ति में डूब जाना चाहिए। पं. भारद्वाज ने कहा कि मनुष्य कितना भी दुखी क्यों ना हो परंतु उसका मन अगर कथा में लगा है तो मनुष्य दुखों से कोसों दूर रहेगा लेकिन मनुष्य को अपने कान और मन दोनों को कथा में लगाकर सुनना चाहिए। उन्होंने कहा कि मनुष्य की तृष्णा ही भक्ति नहीं करने देती है, इसलिए अपनी तृष्णा से दूरी बनाकर रहना ही उचित होता है। इंसान के बंधन और मोक्ष का कारण मन होता है यदि मनुष्य का तन तो मंदिर में है लेकिन मन उसका घर गृहस्थी, दुकानदारी में लगा है तो उसका मंदिर में रहने से कोई फायदा नहीं होता। महामंडलेश्वर मंहत श्री रामदास जी महाराज ने कहा कि भगवान से जब हम संबंध जोड़ ले है तो भगवान हम पर कृपा करते हैं जिससे हमारा जीवन धन्य हो जाता है।

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