ग्वालियर / कर्म अच्छे हो तो वही धर्म बन जाता है। अच्छा कर्म करने वाला इंसान ईश्वर का भक्त बन जाता है। जीवन में जिसके हदय में दया, करुणा, अहिंसा की भावना रहती है, उनका जीवन सुखद तथा प्रशस्त होता है। यह विचार गणिनी आर्यिकाश्री अंतसमति माताजी ने आज गुरुवार को माधवगंज स्थित दिगंबर जैन पार्श्वनाथ मंदिर में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कही।
गणिनी आर्यिकाश्री ने कहा कि अहिंसा जीवन है, प्रकाश और अमृत है, तो हिंसा अंधकार, विष और मौत है। हिसा एक ऐसा खतरनाक मोड़ है जो जीवन को पतन की ओर ले जाता है। उन्होंने बताया कि मंदिर आत्म शांति के केन्द्र होते हैं। वहां आकर मानसिक व आत्मिक शांति प्राप्त होती है। भगवान की भक्ति करें और अहंकार को छोड़ दें। मंगल प्रवचन से पहले गणिनी आर्यिकाश्री के चरणों श्रीफल आशीर्वाद ज्ञान वात्सल्य पावन बर्षायोग समिति के अध्यक्ष सुशील जैन, डॉ विकास जैन, भरत जैन, हेमंत जैन, जितेंद्र जैन संजय जैन अखिलेश जैन, संदीप जैन, सुधीर जैन द्वारा भेंटकर मंगल आशीर्वाद लिया। जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि गणिनी आर्यिकाश्री के मंगल प्रवचन 8:30 बजे से जैन मंदिर माधौगंज में होते है।
*सुख की परिभाषा प्रत्येक के लिए अलग अलग होती है*।
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गणिनी आर्यिकाश्री अंतसमती माताजी ने धर्मसभा में कहा कि सुख की कामना प्रत्येक मनुष्य में होती है, लेकिन सुख की परिभाषा प्रत्येक के लिए अलग अलग होती है। कोई ज्यादा धनवान होने को सुख मानता है, कोई स्वस्थ शरीर को सुख मानता है। किसी के लिए सुख के मायने मान-प्रतिष्ठा है, तो किसी के लिए रूप-सौन्दर्य से बढ़कर कुछ भी नहीं। किसी को धर्म-आराधना में आनंद की प्राप्ति होती है, तो कोई दूसरों को परेशान करने में खुश होता है। फिर भी सुख को हासिल करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति तरह-तरह के पुरुषार्थ करता है। कुछ हद तक उसे सफलता भी मिलती है, फिर भी वह संतुष्ट नहीं होता है। वह अधिक पाने की चाहत में कभी भी उस सुख के आनंद को भोग नहीं पाता है, जो उसे प्राप्त है। सदा ही उस आनंद की तलाश में रहता है, जो उसे अप्राप्त है।