नई दिल्ली । दिल्ली उच्च न्यायालय ने वन विभाग के वाक विद वाइल्डलाइफ कार्यक्रम पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इससे पहले अदालत के सामने इस मसले पर सुनवाई हुई कि दिल्ली के दक्षिणी रिज में स्थित असोला भाटी वन्यजीव अभयारण्य के अंदर वन विभाग को इस महीने प्रस्तावित ‘वाक विद वाइल्डलाइफ’ कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति दी जाए या नहीं। फिलहाल, अदालत के रुख से साफ है कि वो ‘वन विभाग के वाक विद वाइल्डलाइफ’ जवाब से संतुष्ट नहीं है।
दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने असोला भाटी वन्यजीव अभयारण्य के अंदर लोगों की सुरक्षा के संबंध में अपनी चिंता दोहराई, जिसे आठ-नौ तेंदुओं के साथ-साथ लकड़बग्घे और सियार जैसे अन्य जंगली जानवरों का बसेरा माना जाता है। अदालत ने पक्षकारों के वकील को सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है। जस्टिस जसमीत सिंह की अदालत ने इस मसले पर कहा कि हम लोगों को इससे कैसे अवगत करा सकते हैं? आपको ऐसा लगता है कि तेंदुआ छिप कर रहने वाला जानवर है।
अगर नहीं तो वन विभाग के ‘वाक विद वाइल्डलाइफ’ जैसे साहसिक कार्यक्रमों को आयोजित करने की इजाजत कैसे दी जा सकती है। अगर किसी व्यक्ति को चोट पहुंची, तो क्या होगा? वहां बच्चे भी हो सकते हैं। न्याय मित्र अधिवक्ता गौतम नारायण और आदित्य एन प्रसाद ने दलील दी कि असोला भाटी के अंदर कोई मानवीय गतिविधि नहीं हो सकती है। यह एक संरक्षित क्षेत्र है। अदालत को सूचित किया गया कि अभयारण्य से भटका हुआ तेंदुआ, जिसे पिछले सप्ताह निकट की एक आवासीय कॉलोनी में देखा गया था, अभी तक पकड़ा नहीं जा सका है।