नई दिल्ली । महिलाओं में होने वाले स्तन कैंसर की पहचान आसान बनाने के लिए एम्स आईआईटी, दिल्ली के साथ मिलकर उपकरण तैयार कर रहा है। इसकी मदद से स्तन कैंसर की जांच के लिए किए जाने वाले मैमोग्राफी का अध्ययन किया जाएगा। अभी अध्ययन में काफी समय लगता है। अब एआई आधारित उपकरण मैमोग्राफी का अध्ययन करेगा और इसकी गति कई गुना अधिक होगी। देश की महिलाओं में स्तन कैंसर की समस्या सबसे ज्यादा है। करीब 60 से 70 फीसदी मरीजों की पहचान काफी देरी से होती है। अंतिम चरण में अस्पताल पहुंचने के कारण इन मरीजों बचा पाना मुश्किल हो जाता है।
ऐसे में यदि जांच की गति बढ़ती है तो महिलाओं को इस बीमारी की जटिलताओं से बचाया जा सकेगा। एम्स के डॉ. बीआर अंबेडकर संस्थान रोटरी कैंसर अस्पताल की प्रमुख डॉ. सुषमा भटनागर ने बताया कि जागरूकता के अभाव और सुविधाओं की कमी के कारण कैंसर की स्क्रीनिंग समय पर नहीं हो पाती। ऐसे में सुविधाओं के विस्तार में एआई काफी मददगार साबित हो सकता है। इसे देखते हुए आईआईटी दिल्ली के साथ मिलकर उपकरण विकसित करने के लिए शोध किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हर साल हजारों महिलाएं इसका शिकार बनती है। जबकि इसकी स्क्रीनिंग बहुत आसान है। महिलाएं अपने स्तर पर भी जांच कर सकती हैं। यदि स्तर में कोई गांठ दिखे तो सतर्क हो सकती है। इसके इलावा मैमोग्राफी करने के बाद स्थिति स्पष्ट हो जाती है। देश में कैंसर के मरीजों की पहचान के लिए स्वास्थ्य टीम घर-घर पहुंचेगी। यह प्रोग्राम पूरे देश में व्यापक स्तर पर चलेगा।
इस अभियान के दौरान स्तन, सर्वाइकल और ओरल कैंसर की जांच चल रही है। इस बारे में प्रिवेंटिव मेडिसिन के सहायक प्रोफेसर डॉ. पल्लवी शुक्ला का कहना है कि देश भर में चल रहे स्क्रीनिंग कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आशा वर्कर को प्रशिक्षण दिया गया है। स्वास्थ्य विभाग की टीम को भी प्रशिक्षण दिया गया है। वहीं मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के अतिरिक्त प्रोफेसर डा. अजय गोगिया ने कहा कि पश्चिमी देशों के मुकाबले देश में कैंसर के मामले अधिक हैं। वहीं सुविधाओं के अभाव के कारण जल्द पकड़ नहीं हो पाती। 60 फीसदी मरीज अंतिम स्टेज पर सामने आते हैं जिनमें समस्याएं गंभीर हो जाती है।
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