- राज ठाकरे जो मांगेंगे वही मिलेगा

महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति लोकसभा चुनाव में काफी नाजुक हो गई है। ऐसी स्थिति में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे भारतीय जनता पार्टी से जो मांगेंगे। वह उन्हें मिलने जा रहा है। महाराष्ट्र की शिवसेना में विभाजन कराकर एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया गया था। एनसीपी में विभाजन कराकर अजीत पवार को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था। इसके बाद भी जो रायता महाराष्ट्र में फैला है। उसे भारतीय जनता पार्टी समेट नहीं पा रही है।ऐसी स्थिति में भारतीय जनता पार्टी मुंबई की एक लोकसभा सीट और विधान परिषद में राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे को देने के लिए तैयार हो गई है। राज ठाकरे एक राज्यसभा की सीट मांग रहे है।इस पर जरूर संसय बना हुआ है। वर्तमान स्थिति में भाजपा ने राज ठाकरे को आश्वासन तो दे ही दिया है। अब देखिए महाराष्ट्र में किस तरह से तालमेल होता है। भाजपा तीन प्रादेशिक पार्टियों को साथ लेकर लोकसभा चुनाव के मैदान में उतर रही है। इसका फायदा होता है,या नुकसान, आने वाले परिणाम ही इसका निर्णय करेंगे। भाजपा को फिलहाल ठाकरे परिवार की विरासत मिल गई है, यही क्या काम है। विपक्षी दल चुनाव आयोग से मिले, उसके बाद केंद्रीय जांच एजेंसी की कार्रवाई तेज हुईविपक्षी दलों का प्रतिनिधि मंडल चुनाव आयोग से मिलकर केंद्रीय जांच एजेंसी द्वारा चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद जिस तरह से विपक्षियों पर कार्रवाई की जा रही है। उसको रोकने की मांग की थी। चुनाव आयोग ने आश्वासन भी दिया था। विपक्षी दलों की मांग के बाद केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्रवाई बंद होने के स्थान पर और तेज हो गई ।आम आदमी पार्टी के विधायक गुलाब सिंह यादव के यहां आयकर विभाग ने छापा मारा। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के यहां छापे पड़े।पूर्व सांसद महुआ मित्रा के यहां सीबीआई का छापा पड़ा। ममता बनर्जी की पार्टी के दो और नेता चंद्रभान सिन्हा और स्वरूप विश्वास के यहां पर आयकर की टीम ने छापा डाला। अब इस बीच में विपक्षी दल चुनाव लड़े, या आयकर सीबीआई और ईडी का मुकाबला करें। चुनाव आयोग के तीनों सदस्य इस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे नजदीकी बताये जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में इंडिया गठबंधन को समझ नहीं आ रहा है,कि वह किस तरह से चुनाव लड़े। संविधान और संवैधानिक संस्थाओं की ऐसी स्थिति होगी किसी ने सोचा भी नहीं था। लालू, तेजस्वी यादव, डरे या डराये गएबिहार में लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव ने इंडिया गठबंधन के सारे किए कराए पर पानी फेर दिया है। जिस तरह उत्तर प्रदेश में मायावती के ऊपर दबाव था। क्या वही दबाव लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव पर केंद्रीय जांच एजेंसी का बन गया है? इसको लेकर अटकलों का दौर चल पड़ा है। जिस तरह से बिहार में लालू प्रसाद यादव ने एनडीए के पक्ष में रास्ता साफ किया है। उसको देखते हुए यह कहा जा सकता है,कि महा गठबंधन को अब बिहार में एक सीट भी मिलेगी, या नहीं।इसकी चर्चा होने लगी है। यह भी चर्चा चल रही है,कि यदि बिहार में भाजपा चुनाव जीत जाती है। ऐसी स्थिति में लालू प्रसाद यादव भाजपा के साथ समझौता कर लेंगे। कम से कम लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव की बिहार में पकड़ तो बनी रहेगी।लेकिन एक बार कांग्रेस और कन्हैया कुमार मजबूत हो गए , तो बिहार में तेजस्वी यादव की मुसीबतें बढ़ जाएगी। इसको ध्यान में रखते हुए लालू परिवार ने केंद्रीय जांच एजेंसियों के दबाव में महा गठबंधन को तोड़ने का काम किया है। राजनीति में किसी भी पल कुछ भी हो सकता है। बिहार में इंडिया गठबंधन की हालत को देखते हुए यही कहा जा सकता है। चुनाव लड़ने के लिए पैसा नहीं है, सीतारमण के पासकेंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बार लोकसभा का चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। उन्होंने कहा कि उनके पास लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए पैसे नहीं है। भारतीय जनता पार्टी का यदि कोई उम्मीदवार, वह भी जो केंद्रीय मंत्री हो। वह चुनाव खर्च को लेकर चुनाव लड़ने से इनकार कर दे, तो इससे ज्यादा आश्चर्य की बात क्या हो सकती है। कहा जा रहा है कि उन्हें तमिलनाडु अथवा आंध्र प्रदेश से चुनाव लड़ने के लिए पार्टी अध्यक्ष ने कहा था। उन्होंने 10 दिन का समय लिया था। इसके बाद भी निर्मला सीतारमण चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। उन्हें अंदाजा हो गया है, वह किसी भी सीट से चुनाव लड़ती, उनका हारना तय था। इसलिए उन्होंने चुनाव लड़ने से बचने के लिए कह दिया, कि उनके पास चुनाव लड़ने के लिए पैसे नहीं है। लोकसभा चुनाव में इतने बड़े-बड़े दिग्गज नेता जब चुनाव लड़ने से इनकार कर दें। तब आसानी से समझा जा सकता है, कि इस बार लोकसभा चुनाव के परिणाम क्या होंगे।

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