- अपने मृत शरीरों के लिए प्रयोगशाला में करा रहे बुकिंग

वाशिंगटन अमेरिका में लोग मरने से पहले ही अपने मृत शरीरों के लिए एक खास प्रयोगशाला में बुकिंग करा रहे हैं, ताकि उनके मृत शरीर सुरक्षित रखे जा सकें। इस लैब में 50 से ज्यादा शव रखे हुए हैं। इनकी संख्या बढ़ती जा रही है। इस प्रक्रिया में मानव शरीर को बर्फ की तरह जमा कर उस समय तक रखने का प्रावधान है जब उन्नत तकनीक से लोगों का जीवन फिर से लौटाया जा सकेगा। अमेरिका के एरिजोना प्रांत के स्कॉट्सडेल प्रयोगशाला में मानवशरीर और उनके अंगों को सुरक्षित रखा जा रहा है। इसके लिए ग्राहक लगातार बढ़ रहे हैं। इस तरह ये उद्योग के रूप में पनप रहा है। हालांकि इसकी कोई गारंटी नहीं है कि भविष्य में वाकई इस तरह लोगों को फिर से जीवित किया ही जा सकेगा। इस तरह से शरीर को संरक्षित रखने के प्रक्रिया को चिकित्सा जगत में जरूर संदेह की निगाह से देखा जा रहा है। आलोचना भी की जा रही है। लेकिन क्रायोनिक्स को मानने वालों में बहुत से हाई प्रोफाइल ग्राहक भी हैं, जो मौत के बाद के जीवन के लिए अपने मृत शरीर के साथ जोखिम लेने को तैयार हैं। इस प्रक्रिया में वैज्ञानिकों की कोशिश मौत के बाद जल्दी से जल्दी शरीर को संरक्षित करने की होती है। उनका इरादा जितना संभव हो शरीर की हर कोशिका को संरक्षित करना होता है। इसके लिए शव को -196 डिग्री सेंटीग्रेड पर रखा जाता है। वैज्ञानिकों को उद्देश्य शरीर में विघटन या विखंडन की प्रक्रिया को जहां तक संभव हो रोकना होता है। इसके लिए उससे पहले एक खास द्रव शरीर के अंदर संचारित करते हैं जो ठंडा होने के साथ फैलता है और शरीर के अंदर विघटन की प्रक्रियाओं को जारी रहने से रोक देता है। इस पूरी प्रक्रिया को क्रायोप्रिजर्वेशन कहते हैं। हैरानी की बात यह है कि क्रायोनिक प्रक्रिया अभी से नहीं बल्कि काफी समय पहले से चल रही है। पहली शरीर जो क्रायोनिक पद्धति से गुजरा था, वह 1967 में संरक्षित किया गया था। आज यह प्रक्रिया एक व्यवासाय और उद्योग का रूप ले रही है। एल्कोर कंपनी के सीएओ मैक्स मोर का कहना है, “ हम जो पेशकश कर रहे हैं ,वह वापस आने का केवल एक मौका भर है और अनंत जीवन का मौका है, यह सौ साल का भी हो सकता है या फिर हजार साल का भी हो सकता है। इस तकनीक पर काम करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि विज्ञान की दुनिया में बहुत ही अप्रत्याशित उपलब्धियां हासिल हुई हैं। 100 साल पहले चांद पर जाने की बात कपोल कल्पना लगती थी। लेकिन यह संभव हुआ। ज्यादा पहले नहीं 1950 के दशक तक ही लोग मृत घोषित किए जाते थे तब हमें नहीं मालूम होता था कि हमें उनके साथ क्या करना है। अब सीपीआर से उन्हें वापस जिंदा करने के प्रयास होते हैं। इस प्रक्रिया के लिए केवल पूरे शरीर ही संरक्षित नहीं किया जाता है। बल्कि शरीर के अंग खास तौर से मस्तिष्क को भी संरक्षित किया जाता है। इसके अलावा भ्रूण, या मृत शिशु भी संरक्षित किए जाते हैं। यहां तक की मानव स्पर्म या अंडजों का भी संरक्षण किया जाता है।

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