- (विचार मंथन) मतदाता का अधिकार है मतदान, निर्वाचित प्रतिनिधि को मिलते हैं मतदाताओं के अधिकार

) भारतीय संविधान में मतदाताओं को अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार दिया गया है। निर्वाचित प्रतिनिधि अपने संसदीय अथवा विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं के अधिकार का प्रयोग करते हुए संसद और विधानसभा में जो भी कानून बनाए जाते हैं उसमें मतदान करते हैं। बहुमत के आधार पर लोकतांत्रिक व्यवस्था के कानून और नियम बनाने के अधिकार मिलते हैं। जब भी संसद और विधानसभा में कानून बनाए जाते हैं, बहुमत के आधार पर कानून और नियमों को स्वीकृति प्रदान की जाती है। तभी वह लागू होते हैं। मतदाता जब तक अपने इस अधिकार को गंभीरता के साथ नहीं समझेगा तब तक उसके साथ हमेशा इसी तरह का धोखा होता रहेगा जैसा कि पिछले वर्षों से होता चला आ रहा है। मतदान केवल मतदाता का कर्तव्य नहीं है। मतदान उसका अधिकार है। केंद्र एवं राज्य में जो भी सरकारें बनती हैं, उसमें मतदाता और राजनीतिक दलों की बड़ी भूमिका होती है। क्योंकि मतदाता के मतदान करने के बाद जिस पार्टी को बहुमत मिलता है, उसी की केंद्र एवं राज्य में सरकार बनती है। वही बहुमत के आधार पर सरकार बनाती है। मतदाताओं को संविधान की बुनियादी बातों को समझना बहुत जरूरी है। मतदाताओं को उनके अधिकार से भी परिचित कराया जाना जरूरी है। जब कोई भी राजनीतिक दल मतदाताओं के लिए घोषणा पत्र जारी करता है। चुनाव लड़ने वाला उम्मीदवार मतदाताओं को क्षेत्र का विकास करने और क्षेत्र की समस्याओं को दूर करने का जो आश्वासन देता है। मतदाता उसी से प्रभावित होकर अपना वोट उसके पक्ष में देता है। मतदाता राजनीतिक दल की विचारधारा, राजनीतिक दल के घोषणा पत्र में किए गए वायदे और उम्मीदवार द्वारा किए गए वायदों को ध्यान में रखते हुए अपना मत देता है। उसे संसदीय या विधानसभा क्षेत्र से बहुमत के आधार पर वह चुनाव जीतता है। लोकसभा और विधानसभाओं में उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। निर्वाचित प्रतिनिधि और राजनीतिक दल यदि मतदाताओं से जो वायदे किए गए थे जिस विचारधारा के आधार पर उससे मत मांगा गया था यदि वह उसके विपरीत जाकर काम करता है तो वह मतदाताओं के साथ एक तरह की धोखाधड़ी है। निर्वाचित सांसद अथवा विधायक राजनीतिक दल को छोड़कर दूसरे दल में जाता है , तो यह मतदाताओं के साथ धोखाधड़ी है। इसी तरीके से निर्वाचित प्रतिनिधि यदि अपने वायदे से मुकर जाता है, तो यह भी मतदाताओं के साथ एक तरह की धोखाधड़ी है। मतदाताओं को अपने इस अधिकार को समझते हुए मतदान करना चाहिए। मतदाता सजग होगा तो राजनीतिक दल और निर्वाचित प्रतिनिधि मतदाताओं के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझेंगे निर्वाचित प्रतिनिधि नैतिकता के साथ काम करेंगे। संविधान ने नागरिकों को जो मौलिक अधिकार दिए हैं। कोई भी सरकार इन अधिकारों को कम या खत्म नहीं कर सकती है। संविधान की मूल संरचना या आत्मा निष्पक्ष चुनाव कराने और हर नागरिक के अधिकारों को सुरक्षित बनाने का काम करती है। इस अधिकार की रक्षा करना मतदाता का ही कर्तव्य और अधिकार है। जब मतदाता अपने कर्तव्य और अधिकार को समझ लेगा सही मायने में तभी वह सही सरकार को चुन पाएगा। तभी उसके मौलिक अधिकार सुरक्षित रह पाएंगे। भारतीय नागरिकों को चाहे वह किसी भी जाति, धर्म का स्त्री, पुरुष ट्रांसजेंडर अपंग अथवा किसी भी आयु वर्ग का हो सभी को समान अधिकार दिए गए हैं। संविधान की इस संरचना को बदलने का अधिकार किसी के पास भी नहीं है। यह तभी सुरक्षित रह पाएंगे जब नागरिक स्वयं अपने अधिकारों और मतदान के कर्तव्य को लेकर सजग होंगे।

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