मध्य प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने सरकार पर भेदभाव का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि विकास कार्य सिर्फ बीजेपी विधायकों के क्षेत्रों में हो रहे हैं, कांग्रेस विधायकों के क्षेत्रों में विकास कार्य नहीं हो रहे हैं। ऐसे में सभी कांग्रेस विधायकों ने अपना वेतन नहीं लेने का फैसला किया है।
मध्य प्रदेश विधानसभा में कांग्रेस के सदस्यों ने राज्य सरकार पर विकास कार्यों में भेदभाव का आरोप लगाया। साथ ही, इसके विरोध में पार्टी विधायकों ने फैसला किया है कि वे अब विधायक के तौर पर मिलने वाला वेतन नहीं लेंगे।
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने विधायक दल के इस फैसले की जानकारी सदन को दी और इसकी एक प्रति सदन पटल पर रखी। राज्य में पहली बार ऐसी स्थिति बनी है, जब पूरे विपक्ष ने मिलकर ऐसा फैसला लिया है।
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शून्यकाल के दौरान उमंग सिंघार ने सदन को बताया कि भाजपा सरकार विपक्ष के सदस्यों के साथ भेदभाव कर रही है। उनके क्षेत्र को न तो सड़क विकास के लिए फंड मिल रहा है और न ही स्कूल भवन, सामुदायिक भवन सहित अन्य विकास कार्यों के लिए कोई फंड मिल रहा है।
इधर, भाजपा विधायकों के क्षेत्रों में 15-15 करोड़ रुपये के काम कराए जा रहे हैं। इसके लिए प्रत्येक विधायक से प्रस्ताव लिए गए। उनके क्षेत्र के विकास के लिए रोडमैप तैयार किया गया, लेकिन कांग्रेस विधायकों ने कोई प्रस्ताव दिया भी तो उसे कूड़ेदान में फेंक दिया गया।
इससे जनकल्याण के काम प्रभावित हो रहे हैं, इसलिए विधायक दल ने निर्णय लिया है कि वे विधायक के तौर पर मिलने वाला वेतन नहीं लेंगे। उन्होंने राज्य सरकार से मांग की कि यह राशि राजकोष में जमा कराने के बाद ही विकास कार्य कराए जाएं।
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मध्य प्रदेश विधानसभा में एक विधायक को वेतन और भत्ते मिलाकर एक लाख 10 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। विधानसभा की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार विधानसभा में कांग्रेस के 65 सदस्य हैं। इनमें से एक विधायक निर्मला सप्रे के भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस उन्हें अपने साथ नहीं मानती। ऐसे में इन सभी 64 विधायकों का कुल वेतन 70.40 लाख रुपए होने का अनुमान लगाया जा रहा है।