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दिल्ली हाईकोर्ट ने बच्चे के स्वाभाविक अभिभावक होने पर कहा
नई दिल्ली । दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अपनी पहली पत्नी की मौत के बाद किसी शख्स की दूसरी शादी, शख्स को पहली शादी से हुए बच्चे के स्वाभाविक अभिभावक होने से अयोग्य घोषित करने का आधार नहीं हो सकती है। जस्टिस सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल की खंडपीठ ने अपने आदेश में 21 मार्च, 2018 के एक फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ एक नाबालिग लड़के के नाना-नानी की ओर दायर की गई अपील में यह टिप्पणी की। जिसने उन्हें बच्चे का संरक्षक नियुक्त करने की उनकी याचिका खारिज कर दी थी। रिपोर्ट के मुताबिक वे बच्चे का संरक्षक बनाए जाने के साथ ही उसकी स्थायी कस्टडी की भी मांग कर रहे थे।
इस जोड़े की शादी 2007 में हुई और बच्चे का जन्म 2008 में हुआ। बच्चे के नाना-नानी ने दलील दी थी कि शादी के सात साल के भीतर दहेज की मांग और उत्पीड़न के कारण पति और उसके परिवार ने उनकी बेटी को 2010 में ‘मार डाला’ था। पति और उसके परिवार के सदस्यों को बच्चे के नाना-नानी की ओर से दायर आपराधिक मामले में 2012 में बरी कर दिया गया था। बच्चे के पिता के परिवार का दावा था कि पिता की गैर-मौजूदगी में बच्चे को उसके नाना-नानी को सौंप दिया गया था।
जबकि बच्चे के नाना-नानी ने हाईकोर्ट के सामने कहा कि लड़के की कस्टडी हमेशा उनके पास थी। दहेज मामले में उनकी बेटी के पति के बरी होने के बाद ही उन्होंने बच्चे की कस्टडी दिए जाने की मांग की थी। उन्होंने दावा किया कि वह शख्स उनकी बेटी के प्रति क्रूर था और वह बच्चे की देखभाल करने में सक्षम नहीं था। जबकि खंडपीठ ने कहा कि आपराधिक मुकदमे के अलावा बच्चे के पिता के खिलाफ रिकॉर्ड पर कोई अन्य अयोग्यता नहीं लाई गई है। बच्चे के नाना-नानी ने कहा कि दूसरा परेशान करने वाला पहलू यह है कि शख्स ने दूसरी शादी कर ली है और उसकी दूसरी शादी से एक बच्चा भी है। इसकारण स्वाभाविक अभिभावक नहीं कहा जा सकता है।
इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में जब पिता ने अपनी पहली पत्नी को खो दिया हो, उसकी दूसरी शादी को स्वाभाविक अभिभावक बने रहने के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है। हाईकोर्ट की पीठ ने कहा कि पति को स्वाभाविक अभिभावक बनने के लिए अयोग्य ठहराने वाली कोई भी परिस्थिति सामने नहीं आई है। पीठ ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने नाना-नानी को नाबालिग का संरक्षक नियुक्त करने से ‘सही इनकार’ किया था।
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