नई दिल्ली । डुप्लीकेट पानी के बिल उपलब्ध कराने के बदले 300 रुपये रिश्वत लेने का एक व्यक्ति पर लगा दाग 20 साल बाद धुला। भ्रष्टाचार के लिए दोषी करार देकर सजा देने के निचली अदालत के निर्णय को रद करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि कमजोर सुबूत व अनुमान के आधार पर भ्रष्टाचार के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा की पीठ ने भ्रष्टाचार का मामला किसी की छवि को खराब कर देता है, ऐसे में यह अपराध संदेह से परे साबित किया जाना चाहिए
। हालांकि, अभियोजन पक्ष ऐसा करने में नाकाम रहा है। अपीलकर्ता को आरोपों से बरी करते हुए अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में साक्ष्य उत्कृष्ट गुणवत्ता के होने चाहिए। अदालत ने कहा कि यह सही है कि शिकायतकर्ता की गवाही के अभाव में भी भ्रष्टाचार अधिनियम की धारा-सात के तहत अपराध साबित किया जा सकता है लेकिन इसके लिए अदालत के समक्ष अन्य विश्वसनीय ठोस साक्ष्य पेश कि जाने चाहिए। दिल्ली जल बोर्ड में मीटर रीडर के तौर पर काम करने वाले जय नारायण ने निचली अदालत के 29 मार्च 2007 के निर्णय के विरुद्ध अपील याचिका दायर की थी।
भ्रष्टाचार के मामले में निचली अदालत ने जय नारायण को दोषी करार देते हुए साढ़े तीन साल के कठाेर कारावास की सजा व तीन हजार रुपये जुर्माना लगाया था। याचिका के अनुसार शिकायतकर्ता जय नारायण ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि अपीलकर्ता जय नारायण ने उनकी पत्नी के नाम पर डुप्लीकेट पानी बिल जारी करने के लिए 500 रुपये रिश्वत देने की मांग की। हालांकि, दोनों के बीच 300 रुपये में बात तय हुई थी। आरोप है कि जहांगीरपुर स्थित सिविल लाइन्स जोन के आफिस में जय नारायण को पांच अगस्त 2003 को रिश्वत की रकम स्वीकार करते हुए भ्रष्टाचार निरोधक शाखा ने पकड़ा था। हालांकि, अपीलकर्ता जय नारायण ने कहा था कि रिश्वत के संबंध में सुबूत नहीं हैं और उसे झूठे मामले में फंसाया गया है।
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