- भक्तों की मनोकामना पूर्ण करतीं हैं खेड़ापति माता -


लोगों की आस्था का प्रतीक है माँ खेड़ापति माता का मंदिर -- 

भितरवार ।नगर भितरवार के वार्ड नं 14 में  लक्ष्मणगढ़ पहाड़ी की तलहटी और कल-कल बहती पार्वती नदी के तट के पास 400 वर्ष पुराने प्राचीन खेड़ापति मंदिर में अष्ठभुजी मां विराजमान हैं। यहां पहुंचने वाले प्रत्येक भक्त की आस्था एवं विश्वास मां से जुड़ा हुआ है। इस कारण प्रत्येक शारदीय नवरात्र एवं चैत्र नवरात्र में हजारों भक्त मां के दरबार में मत्था टेकने पहुंचते हैं।

खेड़ापति माता के दरबार में मां का आशीर्वाद पाने के लिए हजारों भक्त यहां हवन, पूजन के साथ-साथ कन्याभोज का आयोजन करते हैं। यह सिलसिला पिछले 400 सालों से चला आ रहा है। भितरवार नगर परिषद  में स्थित लक्ष्मणगढ़ पहाड़ और पार्वती नदी के किनारे बने इस प्राचीन माता मंदिर की प्रसिद्धि चारों ओर फैली है। इस कारण भक्तों का अटूट विश्वास एवं आस्था का संगम यहां देखने को मिलता है।

खेड़ापति नाम पड़ने की किवदंती --

खेड़ापति माता मंदिर के पुजारी  ने बताया कि मंदिर 400 वर्ष से ज्यादा पुराना है। इसका खेड़ापति माता मंदिर नाम तब पड़ा था, जब कस्बे की बसाहट शुरू हुई थी। कस्बे की बसाहट होने से पूर्व यहां बसने आए लोगों ने माता मंदिर की स्थापना की थी। पुराने जमाने में किसी गांव या खेड़ा की बसाहट से पूर्व माता के मंदिर की स्थापना की जाती थी। इससे गांव, खेड़ा एवं नगर में कोई प्राकृतिक आपदा न हो और भितरवार कस्बे की बसाहट से पूर्व भी यहां बसने आए लोगों ने माता मंदिर की स्थापना की। तब इसका नाम खेड़ापति माता मंदिर रखा गया।

विपदा से पार कराया था  मां ने  -- 

सन्‌ 1971-में भितरवार अंचल भीषण बाढ़ से तबाह हो रहा था। तब खेड़ापति मां की कृपा से कस्बा सुरक्षित बच गया था। वही स्थिति ठीक 50 वर्ष बाद वर्ष 2021 में भी देखने को मिली लेकिन पार्वती नदी का पानी मां के चरणों को धोकर निकल गया था। चाहे सूखा हो या ओलावृष्टि या फिर डकैतों का आतंक, इन सब में मां ने नगर के लोगों की सदैव रक्षा की है।

सूनी गोद भरने वाली माता के नाम से है प्रसिद्धि--

भक्तों का मानना है कि प्राचीन खेड़ापति माता के मंदिर में अगर कोई नारी पूरे श्रद्धा भाव से नव दुर्गा के 9 दिन उपवास रखकर सच्चे मन से श्रद्धा पूर्वक संतान प्राप्ति की मन्नात मांगती है, तो माता उस पर अपनी कृपा बरसाती है। नगर एवं ग्रामीण क्षेत्र के कई लोगों ने माता के इस अद्भुत चमत्कार को जाना और परखा भी है। मन्नत पूरी होने पर बच्चे का मुंडन कराने वाली माताएं यहां आकर विशाल भंडारे भी आयोजित कराती हैं। साथ ही बच्चे का पालना भी माता को भेंट करती हैं। मंदिर से एक और किवदंती जुड़ी है कि घर में शादी होने पर माता के मंदिर में हाजिरी लगाने लोग आते हैं। वर-वधू की जोड़ी माता के दर्शन कर सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं यह परंपरा भी नगर में सदियों से चली आ रही है।

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