नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक मुख्य सचिव के कार्यों या निष्क्रियता का असर चुनी हुई सरकार के कामकाज पर नहीं पड़ना चाहिए। साथ ही कहा कि दिल्ली सरकार के शीर्ष अधिकारी की सेवाओं को छह महीने के लिए बढ़ाने के केंद्र के फैसले को कानून का उल्लंघन नहीं माना जा सकता।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, ‘मुख्य सचिव ऐसे सभी कार्य देखते हैं जो दिल्ली सरकार के कार्यकारी दायरे में आते हैं और जो उसके दायरे के बाहर होते हैं। मुख्य सचिव को केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है, लेकिन उन्हें ऐसे विषयों पर चुनी हुई सरकार के निर्देशों का पालन करना चाहिए जो उसकी कार्यकारी क्षमता के दायरे में आते हैं। पीठ ने यह फैसला 29 नवंबर को सुनाया था और इसे बाद में शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किया गया था।
शीर्ष अदालत का फैसला दिल्ली सरकार की उस याचिका पर आया जिसमें दिल्ली सरकार ने उसके साथ बिना किसी परामर्श के नए मुख्य सचिव की नियुक्ति या मौजूदा शीर्ष अधिकारी नरेश कुमार के कार्यकाल को बढ़ाने के केंद्र के कदम का विरोध किया था। कुमार 30 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले थे। अपने 28 पन्नों के फैसले में पीठ ने शीर्ष अदालत के 1973 के एक फैसले का हवाला दिया और कहा, यह कहा गया था कि मुख्य सचिव का पद बड़े विश्वास का और प्रशासन में महत्वपूर्ण कड़ी होता है। शीर्ष अदालत ने इस वर्ष पांच जजों की संविधान पीठ के 11 मई के फैसले का भी हवाला दिया था जिसमें कहा गया था कि सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि को छोड़कर सेवाओं के प्रशासन पर विधायी और कार्यकारी शक्तियां दिल्ली सरकार के अधीन हैं।