नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव ज्यों- ज्यों समीप आ रहे हैं, कांग्रेसी भी अपनी बाजू चढ़ाने लगे हैं। सातों सीटों के लिए नेताओं ने अभी से अपनी ताल ठोकनी शुरू कर दी है। सबसे रोचक समीकरण उत्तर पश्चिमी दिल्ली सीट पर बन रहे हैं। यह सीट दलित वर्ग के लिए आरक्षित है। ऐसे में पार्टी के चार नेताओं में होड़ लग गई है कि बड़ा दलित नेता कौन? पूर्व केंद्रीय मंत्री कृष्णा तीरथ भी ताल ठोक रही हैं तो दिल्ली के पूर्व मंत्री राजकुमार चौहान भी पंक्ति में हैं। पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष जयकिशन और पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष राजेश लिलोठिया भी दम भरने में लगे हैं।
हर किसी के मन में यही है कि उनसे बड़ा दलित नेता नहीं। बहरहाल, वक्त आने पर इस सीट से टिकट लेने में कौन कामयाब होगा, यह तो अभी बता पाना मुश्किल है, लेकिन यहां पर पार्टी की जमीनी पकड़ नजर नहीं आती। इसलिए टिकट की मारामारी से पहले पार्टी और टिकटार्थियों दोनों को थोड़ी मेहनत कर लेनी चाहिए। प्रदेश कांग्रेस की स्थिति कुछ बेहतर हुई तो अब महिला कांग्रेस कमजोर पड़ गई है। पार्टी की इस प्रदेश इकाई की न तो पिछले लंबे समय से कोई गतिविधि देखने में मिल रही है और न ही किसी तरह की सक्रियता। हद तो तब हो गई जब महिला कांग्रेस अध्यक्ष कौन है,
इसी पर सवाल उठने शुरू हो गए। कहा जा रहा है कि अमृता धवन को जब राजस्थान का सह प्रभारी बनाया गया, तभी वह महिला अध्यक्ष के पद से हट गई थीं। लेकिन चूंकि अभी तक किसी को नया अध्यक्ष नहीं बनाया गया तो अस्पष्टता भी बनी ही हुई है। ऐसे में अमृता सहित कुछ लोगों का कहना है कि अध्यक्ष वही हैं, जबकि बहुत से लोग इससे साफ इन्कार कर रहे हैं। वजूद और वर्चस्व की इस लड़ाई में पार्टी की महिला इकाई अनाथ जैसी हो गई है। आगामी लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों को देखते हुए आलाकमान को जल्द से जल्द तस्वीर साफ कर देनी चाहिए।