- लोस चुनाव :  अंदरूनी कलह से संकटग्रस्त टीएमसी को ममता की दरकार

लोस चुनाव :  अंदरूनी कलह से संकटग्रस्त टीएमसी को ममता की दरकार


कोलकाता । लोकसभा चुनावों से पहले ही अंदरूनी कलह की ज्वाला में झुलस रही तृणमूल कांग्रेस के प्रभाव को लेकर  चिंता उत्पन्न हो गई है। भाजपा, कांग्रेस और सीपीआई (एम) सहित विपक्षी दल सत्तारूढ़ दल के अंदरूनी कलह को मजे से देख रहे हैं। विपक्षी नेताओं का दावा है कि शीर्ष स्तर पर यह अंदरूनी कलह तृणमूल कांग्रेस के पूरी तरह से सफाये की प्रक्रिया की शुरुआत है। इस मामले पर राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना ​​है कि जब तक ममता बनर्जी द्वारा सख्त हस्तक्षेप नहीं किया जाता, तब तक 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों के चयन के समय यह अंदरूनी कलह गंभीर रूप ले लेगी, जिसमें हर कोई अपने पक्ष में अधिकतम संख्या में उम्मीदवारों को आगे बढ़ाने की कोशिश करेगा। 

 

Lok Sabha Election 2024: ममता बनर्जी की पार्टी TMC बदल रही है रणनीति, BJP  की तरह कांग्रेस से दूरी, अलग मोर्चे को लेकर मिले ये संकेत

हालांकि पार्टी ने किसी तरह के नाराजगी संगठन में होने की बात को नकार दिया है। तृणमूल कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने कहा कि पार्टी में सभी सामान्य है और कोई कलह नहीं हो रही है। हालांकि राजनीतिक गुरुओं का कहना है कि इस वर्ष के पहले ही दिन जब तृणमूल कांग्रेस का 27वां स्थापना दिवस मनाया जा रहा था, तब पार्टी में गुटबाजी ने नया मोड़ लेना शुरू किया था। पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी के लिए ये राजनीतिक परेशानी का सबब था। इससे पहले पर्यवेक्षकों ने बहु आयामी कलह को लेकर कहा कि ये कलह ऐसी समय में सामने आई है जब तृणमूल कांग्रेस के साथ राज्य सरकार के महत्वपूर्ण पदाधिकारी दबाव में है। सीबीआई और ईडी जैसी एजेंसियों की जांच भी महत्वपूर्ण चरण में पहुंची है। राज्य में वित्तीय अनियमित्ताओं और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों पर केंद्रीय एजेंसियां भी लगातार जांच करने में जुटी हुई है।

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गौरतलब है कि तृणमूल कांग्रेस में अंदरूनी कलह का होना काफी आम रहा है। हाल में हुई इस संगठन में कलह से साफ हुआ है कि पुराने नेताओं और नए चेहरों के बीच भी विभाजन की स्थिति बनी हुई है। टीएमसी के नेताओं के लिए चिंता का सबब है कि पार्टी के पुराने रक्षक और भविष्य के नए चेहरों के बीच ममता बनर्जी के पुराने वफादारों और दूसरी तरफ पार्टी के साथ गठबंधन करने वालों के साथ एक खराब झगड़े के रूप में देखा जा रहा है।

 

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बता दें कि अभिषेक बनर्जी ने ही पार्टी नेतृत्व के लिए ऊपरी आयु सीमा की अवधारणा को पेश किया था। इस कारण पार्टी में पुराने नेताओं और नए चेहरों के बीच एक सामंजस्य की स्थिति नहीं बन सकी है। दोनों ही गुटों के बीच लगातार तनाव की स्थिति बनी हुई है। हालाँकि ऊपरी आयु सीमा की अवधारणा के खिलाफ पुराने वफादारों ने काफी तीखी प्रतिक्रियाएं दी थी, जिसके बाद गुटबाजी की संभावना काफी अधिक बढ़ सकती थी। पार्टी की स्थापना के बाद से तृणमूल कांग्रेस से जुड़े दिग्गज नेताओं में से एक, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुब्रत बख्शी ने 1 जनवरी को तृणमूल भवन में पार्टी की 27वीं स्थापना दिवस की सालगिरह के जश्न के अवसर पर एक कार्यक्रम में इस मामले पर अपनी नाराजगी भी व्यक्ति की थी।

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पार्टी के राज्य प्रवक्ता कुणाल घोष, जो अभिषेक बनर्जी के करीबी विश्वासपात्र माने जाते हैं ने तुरंत प्रतिक्रिया दी क्योंकि उन्होंने अभिषेक बनर्जी के संबंध में बख्शी की टिप्पणियों पर कड़ी आपत्ति जताई। घोष ने कहा, अभिषेक बनर्जी मैदान में बने हुए हैं और अगर नेतृत्व उनकी बात सुनेगा तो पार्टी को फायदा होगा। मुझे प्रदेश अध्यक्ष द्वारा कहे गए शब्दों पर गंभीर आपत्ति है। इसके बाद बयानों और जवाबी बयानों की बाढ़ आ गई और दोनों पक्षों के नेता सार्वजनिक मंचों से एक-दूसरे पर जुबानी हमले करने लगे।
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