- 'मंत्री पद का दुरुपयोग किया गया', जौहर यूनिवर्सिटी मामले में आजम खान को सुप्रीम कोर्ट से झटका, CJI ने लगाई फटकार

'मंत्री पद का दुरुपयोग किया गया', जौहर यूनिवर्सिटी मामले में आजम खान को सुप्रीम कोर्ट से झटका, CJI ने लगाई फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने आजम खान को रामपुर स्थित मौलाना मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी को लेकर सपा नेता आजम खान को फटकार लगाई है। आजम खान की अध्यक्षता वाले ट्रस्ट द्वारा संचालित इस यूनिवर्सिटी की जमीन का पट्टा रद्द करने को चुनौती दी गई थी, जिसे आज खारिज कर दिया गया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा।

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आजम खान को रामपुर स्थित मौलाना मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी को लेकर सपा नेता आजम खान को फटकार लगाई है। आजम खान की अध्यक्षता वाले ट्रस्ट द्वारा संचालित इस यूनिवर्सिटी की जमीन का पट्टा रद्द करने को चुनौती दी गई थी, जिसे आज खारिज कर दिया गया।

योगी सरकार का आदेश बरकरार

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जमीन का पट्टा रद्द करने के खिलाफ मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट की कार्यकारी समिति द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया गया था।

कोर्ट ने लगाई फटकार

राज्य सरकार ने ट्रस्ट को आवंटित 3.24 एकड़ भूखंड का पट्टा शर्तों के उल्लंघन का हवाला देते हुए रद्द कर दिया था, आरोप लगाया था कि यह मूल रूप से एक शोध संस्थान के लिए आवंटित किया गया था, लेकिन वहां एक स्कूल चलाया जा रहा था। पीठ ने कहा, "ऐसा प्रतीत होता है कि तत्कालीन शहरी विकास मंत्रालय के प्रभारी और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री आजम खान ने एक पारिवारिक ट्रस्ट को भूमि आवंटित करवाई, जिसके वे आजीवन सदस्य हैं।

निजी संस्था को पट्टा क्यों दिया गया

अदालत ने कहा कि पट्टा शुरू में एक सरकारी संस्था के पक्ष में था, जो एक निजी ट्रस्ट से जुड़ा हुआ है। एक सरकारी संस्था के लिए पट्टा कैसे एक निजी ट्रस्ट को दिया जा सकता है? यह पद का दुरुपयोग है।

सिब्बल की दलीलों पर यूपी सरकार को आदेश

हालांकि, शीर्ष अदालत ने ट्रस्ट का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की दलीलों पर ध्यान दिया और उत्तर प्रदेश सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा कि किसी भी बच्चे को उपयुक्त शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश से वंचित न किया जाए।

सिब्बल ने तर्क दिया कि 2023 में पट्टा रद्द करने का निर्णय बिना कोई कारण बताए लिया गया था। सिब्बल ने कहा, "अगर उन्होंने मुझे नोटिस और कारण बताए होते, तो मैं इसका जवाब दे सकता था। अंतत: मामला कैबिनेट में गया। भूमि आवंटन पर मुख्यमंत्री ने निर्णय लिया।

हाईकोर्ट ने भी याचिका खारिज कर दी थी

18 मार्च को हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के भूमि पट्टे को रद्द करने के आदेश को चुनौती देने वाली ट्रस्ट की याचिका खारिज कर दी थी। तब ट्रस्ट की कार्यकारी समिति ने तर्क दिया था कि सुनवाई का अवसर दिए बिना ही पट्टा रद्द कर दिया गया।

हाईकोर्ट में राज्य की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता ने बिना कारण बताओ नोटिस के पट्टा रद्द करने का बचाव करते हुए कहा कि जनहित सर्वोपरि है।

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