- 'तलाक चाहिए तो कोर्ट आना होगा, शरीयत काउंसिल नहीं', मुस्लिम डॉक्टर दंपत्ति की याचिका पर मद्रास HC का फैसला

'तलाक चाहिए तो कोर्ट आना होगा, शरीयत काउंसिल नहीं', मुस्लिम डॉक्टर दंपत्ति की याचिका पर मद्रास HC का फैसला

मद्रास हाईकोर्ट का फैसला अगर कोई मुस्लिम जोड़ा तलाक चाहता है तो पति को कोर्ट से कानूनी मंजूरी लेनी होगी। यह फैसला मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने एक मुस्लिम डॉक्टर जोड़े के तीन तलाक के संबंध में दिया है। यह फैसला 2010 में शादी करने वाले एक मुस्लिम डॉक्टर जोड़े के तीन तलाक के संबंध में एक सिविल रिवीजन याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया गया।

मदुरै। मद्रास हाईकोर्ट का फैसला शरीयत काउंसिल कोई कोर्ट नहीं है, अगर तलाक चाहिए तो पति को कोर्ट से कानूनी मंजूरी लेनी होगी। यह फैसला मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने एक मुस्लिम डॉक्टर जोड़े के तीन तलाक के संबंध में दिया है।

दरअसल, यह फैसला 2010 में शादी करने वाले मुस्लिम डॉक्टर दंपत्ति के तीन तलाक के मामले में सिविल रिवीजन याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया गया।

शरीयत काउंसिल ने जारी किया था सर्टिफिकेट

मामले का मुख्य मुद्दा तमिलनाडु तौहीद जमात, शरीयत काउंसिल से जुड़ा था, जिसने 2017 में पति को तलाक का सर्टिफिकेट जारी किया था। कोर्ट ने कहा कि वह पारिवारिक और वित्तीय मुद्दों को सुलझाने में मदद कर सकती है, लेकिन वह तलाक का सर्टिफिकेट जारी नहीं कर सकती और न ही जुर्माना लगा सकती है। जस्टिस जी आर स्वामीनाथन ने तलाक के सर्टिफिकेट की आलोचना की और इसे चौंकाने वाला बताया।

सिर्फ कोर्ट ही सर्टिफिकेट दे सकता है

पति की रिवीजन याचिका को खारिज करते हुए जज ने दोहराया कि काउंसिल ने पति की तीन तलाक की याचिका को स्वीकार कर लिया है और मध्यस्थता का प्रयास किया है। शरीयत काउंसिल एक निजी संस्था है, न कि कोर्ट। जब तक अधिकार क्षेत्र वाली कोर्ट से ऐसा सर्टिफिकेट नहीं मिल जाता, तब तक शादी को खत्म माना जाता है।

क्या है मामला?

आपको बता दें कि 2018 में पत्नी ने तलाक को विवादित बताते हुए तिरुनेलवेली न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट में घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के तहत याचिका दायर की थी।

महिला ने कहा कि उसे तीन तलाक नहीं दिया गया है, यानी शादी अभी भी वैध है। पति ने उस साल दूसरी शादी कर ली।

इसके बाद 2021 में मजिस्ट्रेट ने पहली पत्नी के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसमें पति को घरेलू हिंसा के लिए 5 लाख रुपये और अपने नाबालिग बच्चे के भरण-पोषण के लिए 25,000 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया।

बाद में एक सत्र अदालत ने इस फैसले के खिलाफ पति की अपील को खारिज कर दिया, जिसके बाद उसे हाईकोर्ट के समक्ष वर्तमान पुनरीक्षण याचिका दायर करनी पड़ी।

क्या कहा हाईकोर्ट ने?

सुनवाई के दौरान जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा कि अगर पति ने तीन तलाक देने की बात कही है, लेकिन पत्नी ने इस पर विवाद किया है, तो सवाल यह है कि क्या तलाक वैध रूप से दिया गया है। न्यायाधीश ने कहा कि जब तक अधिकार क्षेत्र वाले न्यायालय से ऐसा प्रमाण पत्र घोषणापत्र प्राप्त नहीं हो जाता, तब तक विवाह को समाप्त माना जाता है। उच्च न्यायालय ने कहा कि पति को न्यायालय जाकर प्रमाण पत्र प्राप्त करना चाहिए।

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