भारत और पड़ोसी देशों पर ट्रंप की नीति डोनाल्ड ट्रंप के पदभार संभालते ही वैश्विक व्यवस्था में बड़ी उथल-पुथल देखने को मिल सकती है, क्योंकि विदेश नीति को लेकर उनके विचार अपने पूर्ववर्तियों से काफी अलग रहे हैं। भारत के पड़ोसी देशों को लेकर भी ट्रंप की सोच काफी अलग है, इसलिए इसका असर भारत पर भी पड़ेगा। जानिए इन देशों को लेकर ट्रंप की नीति क्या है।
नई दिल्ली। डोनाल्ड ट्रंप जनवरी में अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेंगे। उनके पदभार संभालते ही विश्व व्यवस्था में कुछ बदलाव देखने को मिल सकते हैं, क्योंकि ट्रंप की विदेश नीति अमेरिका के अन्य राष्ट्रपतियों से अलग रही है। चुनाव जीतने के तुरंत बाद ट्रंप ने एक बार फिर इसका संकेत दिया। अमेरिका के नए राष्ट्रपति जहां आमतौर पर जीत के बाद पारंपरिक पश्चिमी सहयोगी देशों के नेताओं से बात करते हैं, वहीं ट्रंप ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान समेत अन्य वैश्विक नेताओं से बात की।
इससे पता चलता है कि डोनाल्ड ट्रंप एशिया के साथ संबंधों को मजबूत करने को ज्यादा महत्व देते हैं। ऐसे में उनके कार्यकाल में अमेरिका की विदेश नीति में कई और अहम बदलाव देखने को मिल सकते हैं। आइए जानते हैं भारत के पड़ोसी देशों को लेकर ट्रंप की नीति क्या हो सकती है।
डोनाल्ड ट्रंप का पहला कार्यकाल भारत और अमेरिका के रिश्तों के लिहाज से अच्छा रहा है। उनके और पीएम मोदी के बीच भी दोस्ताना रिश्ते देखने को मिले। ट्रंप कई मौकों पर भारत को महान देश और मोदी को महान इंसान बता चुके हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उनके कार्यकाल में भारत और अमेरिका के रिश्ते सबसे मजबूत रहे। ट्रंप के नए कार्यकाल में भी भारत प्राथमिकता में रहेगा। ट्रंप भारत के सहयोग को काफी अहम मानते हैं, खासकर चीन को रोकने के लिए। क्वाड को फिर से सक्रिय करने की पहल भी ट्रंप ने ही शुरू की थी, जिससे इसे फिर से नई गति मिल सकती है और इससे अमेरिका और भारत का करीब आना तय है।
डोनाल्ड ट्रंप चीन को सबसे बड़ा खतरा मानते हैं और हमेशा इसके खिलाफ मुखर रहे हैं। इस बार भी उन्होंने अपनी रैलियों में वादा किया है कि वे चीन से आयात होने वाले सामान पर 60 फीसदी आयात शुल्क लगाएंगे, ऐसे में दोनों देशों के बीच व्यापार युद्ध बड़े पैमाने पर बढ़ सकता है। ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल में पहले कार्यकाल में चीन के खिलाफ उठाए गए कदमों पर दोगुना जोर दे सकते हैं। हालांकि, दूसरी ओर, ट्रंप चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ व्यावहारिक, लेन-देन संबंधी सौदों के लिए भी खुले हैं।
पाकिस्तान के प्रति ट्रंप की नीति अन्य राष्ट्रपतियों से अलग रही है और उन्होंने कई मौकों पर पाकिस्तान के खिलाफ खुलकर कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने 2018 में पाकिस्तान पर आतंकवाद को पनाह देने का आरोप लगाते हुए अमेरिकी सैन्य सहायता भी रोक दी थी। इस कदम से पाकिस्तान में ट्रंप के खिलाफ काफी गुस्सा भी था। बाइडेन के कार्यकाल में स्थिति बदल गई और उन्होंने पाकिस्तान को सैन्य सहायता फिर से शुरू कर दी, लेकिन ट्रंप की वापसी से यह प्रगति फिर से बाधित हो सकती है। वह पाकिस्तान पर आतंकवाद पर दोहरा मापदंड अपनाने का आरोप लगाते रहे हैं।
बांग्लादेश के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव काफी अहम था, क्योंकि अंतरिम सरकार के मौजूदा मुखिया मोहम्मद यूनुस डेमोक्रेट्स के करीबी माने जाते हैं और माना जाता है कि उन्हें बाइडेन प्रशासन का समर्थन हासिल है। ऐसे में ट्रंप की जीत उनके लिए अच्छी खबर नहीं है, क्योंकि पहले भी यूनुस ट्रंप की खुलकर आलोचना कर चुके हैं। ट्रंप ने एक भाषण में यूनुस पर निशाना भी साधा था। ऐसे में देखना यह है कि ट्रंप के आने से बांग्लादेश की राजनीति में क्या बदलाव आते हैं।
ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका ने अफगानिस्तान से सैनिकों को वापस बुलाने का फैसला किया था और इसके बाद तालिबान फिर से वहां सत्ता में लौट आया था। इसलिए तालिबान एक बार फिर ट्रंप की वापसी को लेकर आशावादी है, लेकिन सतर्क भी है, क्योंकि ट्रंप ने भी अपने फैसलों से चौंकाया है। हालांकि, अपरंपरागत नेताओं से बातचीत करने की ट्रंप की इच्छा यह दर्शाती है कि वह हमेशा नए संबंधों के लिए खुले हैं। उन्होंने उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन से मुलाकात करके भी कुछ ऐसा ही संदेश देने की कोशिश की।