- 'एक राष्ट्र एक चुनाव' बिल के पक्ष में 220 और विरोध में 149 वोट पड़े; कानून मंत्री ने इसे जेपीसी को भेजने की मांग की

'एक राष्ट्र एक चुनाव' बिल के पक्ष में 220 और विरोध में 149 वोट पड़े; कानून मंत्री ने इसे जेपीसी को भेजने की मांग की

केंद्र सरकार ने लोकसभा में 'एक देश-एक चुनाव' बिल पेश किया। यह बिल भारतीय जनता पार्टी के चुनावी घोषणापत्र में शामिल था। विपक्ष के हंगामे के बीच केंद्र सरकार ने यह बिल पेश किया। लोकसभा में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक देखने को मिली।

केंद्र सरकार के कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में 'एक देश-एक चुनाव' 129वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया, जिसका विपक्ष ने कड़ा विरोध किया। कानून मंत्री ने मांग की कि इस विधेयक को व्यापक चर्चा के लिए जेपीसी के पास भेजा जाए।

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 एक देश, एक चुनाव विधेयक को स्वीकार करने के लिए सदन में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग कराई गई। इसमें पक्ष में 220 और विपक्ष में 149 वोट पड़े। कुछ विपक्षी सदस्यों ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग पर आपत्ति जताई तो अमित शाह ने स्पीकर को पर्ची के जरिए वोटिंग कराने की सलाह दी।

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बिल पर नेताओं की राय...

'एक राष्ट्र एक चुनाव' पर केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि 'एक राष्ट्र एक चुनाव' देश की तरक्की के लिए है। 5 साल में एक बार चुनाव होंगे। पहले भी ऐसा होता था। 1952 से पहले भी इसी तरह चुनाव होते थे। कांग्रेस ने अनुच्छेद 350 का इस्तेमाल कर विधानसभा भंग कर दी थी। इस पर बात करें, लेकिन सिर्फ विरोध के लिए विरोध करना ठीक नहीं है।

एक राष्ट्र एक चुनाव पर कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने कहा कि यह भारत के संविधान और नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला है, जिसका कांग्रेस पार्टी और भारत गठबंधन पुरजोर विरोध करेगा। यह बिल भाजपा की मंशा को दर्शाता है कि वे किस तरह भारत के चुनावों की निष्पक्षता को छीनने की कोशिश कर रहे हैं। हमारी मांग भारत में निष्पक्ष चुनाव की है।

'एक देश, एक चुनाव' बिल के बारे में समझें

  • इस बिल के जरिए देशभर में लोकसभा और राज्य विधानसभा का एक चुनाव होगा।
  • भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन ने इस बिल का समर्थन किया है।
  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सितंबर में एक साथ चुनाव कराने संबंधी विधेयक पर उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों का समर्थन किया था।
  • पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इस समिति का अध्यक्ष बनाया गया था।

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बिल पास होना मुश्किल

  • एक देश, एक चुनाव को पास कराने के लिए सरकार लोकसभा में दो बिल लेकर आई है। इनमें से एक संविधान संशोधन विधेयक है। ऐसे में इसे पास कराने के लिए सरकार के पास दो तिहाई बहुमत होना बेहद जरूरी है।
  • लोकसभा की 543 सीटों में से एनडीए के पास 292 सीटें हैं। यह दो तिहाई बहुमत से काफी कम है। एनडीए को 362 सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी।
  • राज्यसभा की 245 सीटों में से एनडीए के पास 112 सांसद हैं। इसके पास छह मनोनीत सांसदों का समर्थन है, लेकिन इसके लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत है। यानी इसके पास 164 सांसदों का समर्थन होना जरूरी है।
  • भारत में बिल के खिलाफ 205 सांसद खड़े हैं। ऐसे में सरकार के सामने इस बिल को पास कराने में बड़ी चुनौती आने वाली है।

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