- 'मेरे दादाजी के लिए किसी ने कुछ नहीं किया...', वंदे मातरम पर चर्चा के बारे में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के परपोते का बयान।

'मेरे दादाजी के लिए किसी ने कुछ नहीं किया...', वंदे मातरम पर चर्चा के बारे में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के परपोते का बयान।

संसद और पूरे देश में वंदे मातरम को लेकर चर्चा जारी है। इस बीच, वंदे मातरम के रचयिता बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के परपोते का एक बयान सामने आया है। सजल चट्टोपाध्याय ने कहा कि उनके परदादा के लिए किसी ने कुछ नहीं किया है।

संसद में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच वंदे मातरम को लेकर बहस जारी है। सोमवार को पीएम मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा समेत कई नेताओं ने लोकसभा में अपने विचार रखे। इस चर्चा के दौरान वंदे मातरम के रचयिता बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का भी ज़िक्र हुआ। अब इस पूरे मामले पर बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के परपोते सजल चट्टोपाध्याय का भी बयान सामने आया है। उन्होंने कहा कि उनके परदादा के लिए अब तक किसी ने कुछ नहीं किया है।

'मेरे परदादा के लिए अब तक किसी ने कुछ नहीं किया'
वंदे मातरम पर चर्चा के बारे में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के परपोते सजल चट्टोपाध्याय ने कहा, "यह बहुत पहले हो जाना चाहिए था। वंदे मातरम को राष्ट्रीय मंत्र माना जाता है। मेरे परदादा के लिए अब तक किसी ने कुछ नहीं किया है। ऐसे समय में जब अगली पीढ़ी इसे (वंदे मातरम) भूल रही है, पीएम मोदी ने जो किया है वह अच्छा है। मुझे गर्व है। सीएम ममता बनर्जी ने अभी तक कुछ नहीं किया है; उन्हें यह पहले करना चाहिए था।"

सजल चट्टोपाध्याय ने कहा, "अगर कोई दिल्ली से आता है, अमित शाह या कोई भी, तो वे हमारे बारे में पूछते हैं। वे हमें पर्सनली फोन करते हैं। हम राजनीतिक लोग नहीं हैं। हम सिर्फ सच बोलते हैं। मुख्यमंत्री ने अभी तक हमें इनवाइट नहीं किया है। बंकिम बाबू ने जो लिखा था, उसमें सभी हिंदू देवी-देवताओं के नाम शामिल थे, इसीलिए इसे बैन कर दिया गया था। जिस तरह से बंकिम बाबू की उपेक्षा की गई, उसी तरह उनके परिवार की भी उपेक्षा की जा रही है।"

'बंकिम चंद्र देश के पहले ग्रेजुएट थे'
सजल चट्टोपाध्याय ने कहा, "बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय देश के पहले ग्रेजुएट थे। हालांकि, देश में अभी भी उनके नाम पर कुछ भी नहीं है।" रवींद्रनाथ टैगोर के नाम पर एक यूनिवर्सिटी है, तो उनके (बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय) नाम पर एक यूनिवर्सिटी होने में क्या बुराई है? एक रवींद्र भवन है, लेकिन क्या कोई बंकिम भवन है? अगर केंद्र सरकार ऐसा करती है, तो आने वाली पीढ़ियों को पता चलेगा कि वंदे मातरम क्या है और इसे किसने लिखा था। अगर वहाँ कोई यूनिवर्सिटी होगी, तो वहाँ के लोग भी जानेंगे कि बंकिम बाबू कौन थे।"

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