भोपाल । मध्यप्रदेश सरकार ने कर्मचारियों के खिलाफ लंबित विभागीय जांच के मामलों का एक साल में निराकरण करने को कहा है। गौरतलब है कि प्रदेश में करीब 5 हजार अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय जांच और आर्थिक अनियमितताओं के मामले लंबित हैं। प्रदेश में कई ऐसे भी मामले सामने आए हैं जिनमें डिपार्टमेंटल इन्क्वायरी के मामले ही 3-5 साल से चल रहे हैं। रिटारयमेंट हो गया, लेकिन जांच ही पूरी नहीं हुई, जिससे पेंशन रुक गई। अब इन मामलों के निराकरण की टाइम लिमिट ज्यादा से ज्यादा एक साल और कम से कम 5 महीने होगी। प्रथम एवं द्वितीय श्रेणी के मामलों में जांच संभाग आयुक्त और शासन स्तर पर की जाएगी और तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के मामलों में प्रकरणों के निराकरण की जिम्मेदारी विभागाध्यक्ष की होगी। अभी सरकार के सामने यह बात आई है कि सामान्य से प्रकरणों में भी जांच पूरी नहीं हो पाई है। इसका असर काम पर पड़ रहा है। कर्मचारियों के निलंबन और शोकॉज नोटिस दिए जाने की वजह से वे काम नहीं कर पा रहे हैं। कर्मचारियों की कमी से जूझने की वजह से यह निर्णय लिया गया है। समय सीमा में हल करने का है नियम 1966 में बने सिविल सेवा नियम के अनुसार विभागीय जांच और अन्य मामलों में दोषी पाए जाने पर समय सीमा के भीतर प्रकरणों का निराकरण किया जाना है। अब सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी द्वारा विभागों को जारी सकुर्लर में समय सीमा में जांच करने को कहा गया है। निराकरण न होने से कोर्ट में बढ़ रहे प्रकरण विभागीय जांच में शासन स्तर पर निपटारा न होने से कर्मचारियों को कोर्ट में जाना पड़ रहा है। विभिन्न अदालतों में कर्मचारियों के 1 लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं। इन मामलों पर समय-समय पर कोर्ट भी सरकार को हिदायत देता रहा है कि राज्य सरकार इनका अपने स्तर पर निराकरण करे।दो तरह के मामलेसामान्य प्रकरण: 6पदोन्नति रोका जाना। 6कर्मचारी के द्वारा शासन को पहुंचाई गई आर्थिक हानि। ऐसे मामलों में इंक्रीमेंट रोक दिया गया है। बड़े मामले कर्मचारी का दोष सिद्ध होने पर उसे समयमान वेतनमान के निम्नतम स्तर पर कर दिया गया है। सेवाकाल में आगे वेतनवृद्धियां रोका जाना है। अनिवार्य सेवानिवृत्ति या सेवा से मुक्त किया जाना। आरोप प्रमाणित होने पर निलंबन ।