मध्य प्रदेश के जबलपुर में सिविल लाइन, विजय नगर, मदन महल और लार्डगंज थाना परिसर में बने मंदिर थाना प्रभारियों के गले की फांस बन गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मंदिरों को हटाने का स्पष्ट आदेश दिया था, लेकिन अभी तक किसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
जबलपुर (मप्र हाईकोर्ट)। मध्य प्रदेश के थानों के अंदर अवैध रूप से बनाए गए और बनाए जा रहे म
दिरों के मामले में सरकार अपना जवाब पेश नहीं कर सकी। उसने तीन सप्ताह का समय मांगा। हाईकोर्ट ने दो सप्ताह का अंतिम समय देते हुए कहा है कि अगर दो सप्ताह में जवाब पेश नहीं किया गया तो 25 हजार रुपए का जुर्माना जमा करना होगा।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता सतीश वर्मा ने कहा कि जबलपुर के चार थाने तो सिर्फ उदाहरण हैं। हकीकत यह है कि पूरे प्रदेश के थानों में पुलिस द्वारा ही इस तरह के निर्माण कराए जा रहे हैं। जिसके लिए न तो कोई अनुमति ली गई है और न ही दी जा सकती है।
हाईकोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 12 दिसंबर को तय की है। याचिका में ऐसे निर्माणों को हटाने और दोषी अधिकारियों के खिलाफ सिविल सेवा नियमों के तहत कार्रवाई की मांग की गई है।
दरअसल, पिछली सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की डबल बेंच ने अंतरिम आदेश के जरिए जबलपुर समेत प्रदेश के सभी जिलों के थाना परिसरों में मंदिर निर्माण पर रोक लगा दी थी।
राज्य शासन, मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव गृह, नगरीय प्रशासन, पुलिस महानिदेशक, जबलपुर कलेक्टर-एसपी और सिविल लाइन, विजय नगर, मदन महल और लार्डगंज थाना प्रभारियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है।
जनहित याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी अधिवक्ता ओपी यादव की ओर से अधिवक्ता सतीश वर्मा, ग्रीष्मा जैन और अमित पटेल ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश हैं। इसके बावजूद जबलपुर और पूरे प्रदेश में निर्माण जारी है।
संबंधित थाना प्रभारियों के खिलाफ सिविल सेवा नियम के तहत कार्रवाई का भी प्रावधान किया जाए। प्रारंभिक दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश के तहत सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के आलोक में थाना परिसर में मंदिर निर्माण पर रोक लगा दी थी। साथ ही राज्य सरकार व अन्य से जवाब मांगा गया था।