मेला विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों के पद खाली हैं। ये पद अभी से नहीं बल्कि पिछले छह सालों से खाली हैं। भाजपा संगठन में चल रही खींचतान के चलते ग्वालियर मेला विकास प्राधिकरण के पदों पर नियुक्तियां नहीं हो पाई हैं।
परंपरा और आधुनिकता के साथ 119 साल का इतिहास समेटे व्यापार मेले को शुरू हुए एक माह से भी कम समय हुआ है। इस मेले को समृद्ध बनाने के लिए प्रदेश में राज करने वाले शासकों ने भी मेला समितियां बनाई थी। लेकिन भाजपा नेताओं में शीर्ष स्तर पर खींचतान के चलते पिछले छह साल से प्राधिकरण में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष समेत छह समितियों की घोषणा नहीं हो पाई है।
कमल नाथ के शासनकाल में आखिरी अध्यक्ष चैंबर ऑफ कॉमर्स के पूर्व संयुक्त अध्यक्ष प्रशांत गंगवाल और उपाध्यक्ष सैयद अग्रवाल थे। इस साल मेले की व्यवस्थाएं प्रशासनिक अधिकारियों की हैं। इससे पहले भी 2012 से 2018 तक भाजपा शासन के दौरान मेला प्राधिकरण का गठन नहीं हो पाया था। भाजपा का दावा है कि मुख्यमंत्री मोहन यादव के विदेश जाने पर इस मामले पर बाद में विचार किया जा सकता है। मेले में राजनीतिक नियुक्तियों का इंतजार: मेले में राजनीतिक नियुक्तियों का लंबे समय से इंतजार है।
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चूंकि यह मेला 1905 में सिंधिया रियासत के दौर में शुरू हुआ था। तब से लेकर आज तक इस मेले पर सिंधिया परिवार का दबदबा माना जाता है। मेले का नाम भी केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया के नाम पर रखा गया है। इसलिए अब तक मेले के संचालन की जिम्मेदारी महल के पसंदीदा व्यक्ति ही संभालते आ रहे हैं। वहीं भाजपा कार्यकर्ता भी पिछले छह सालों से मेला प्राधिकरण में नियुक्तियों का इंतजार कर रहे हैं। खासकर सिंधिया खेमे की नजर मेला प्राधिकरण में होने वाली नियुक्तियों पर है।
भाजपा कार्यकर्ता लंबे समय से मेला प्राधिकरण में राजनीतिक नियुक्तियों का इंतजार कर रहे हैं। चूंकि यह मेला 1905 में सिंधिया रियासत के दौर में शुरू हुआ था। तब से लेकर आज तक इस मेले पर सिंधिया परिवार का दबदबा माना जाता है। मेले का नाम भी केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया के नाम पर रखा गया है। इसलिए अब तक मेले के संचालन की जिम्मेदारी महल के पसंदीदा व्यक्ति ही संभालते आ रहे हैं। वहीं भाजपा कार्यकर्ता भी पिछले छह साल से मेला प्राधिकरण में नियुक्तियों का इंतजार कर रहे हैं। खासकर सिंधिया खेमे की नजर मेला प्राधिकरण में होने वाली नियुक्तियों पर है।
ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में भाजपा के पास अब पवार के दो केंद्र हैं। एक केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का माना जाता था तो दूसरा अप्रत्यक्ष रूप से विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर का। मेला प्राधिकरण में राजनीतिक नियुक्तियां तभी संभव हो पाएंगी, जब इन दोनों के खेमों के बीच समन्वय बनेगा। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने हमेशा यह प्रयास किया है कि मेले की कमान उनकी पसंद के व्यक्ति को सौंपी जाए। क्योंकि वे भी मेले से जुड़े हुए हैं। इस बार मेला प्राधिकरण में नियुक्तियों में विधानसभा अध्यक्ष खेमे से सांसद भारत सिंह कुशवाह की सहमति भी जरूरी मानी जा रही है।
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संगठन के चुनाव के चलते मेला प्राधिकरण में नियुक्तियों का मामला टल जाएगा। मेले की तैयारियां लगभग अंतिम चरण में हैं। क्योंकि 25 दिसंबर को मेले का औपचारिक शुभारंभ होना है। भाजपा में इस समय संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। इसलिए निगम मंडलों में नियुक्तियों में संगठन की बिल्कुल भी रुचि नहीं है। प्रदेश अध्यक्ष और जिला अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही निगम मंडलों में नियुक्तियों पर विचार किया जाएगा। इसलिए संभावना है कि इस साल भी मेले की कमान प्रशासनिक अधिकारियों के हाथ में ही रहेगी।
अधिकारी भी मेले को आकर्षक बनाने के लिए कोई नवाचार नहीं कर रहे हैं। प्रशासन मेले को समय पर शुरू करने का प्रयास कर रहा है। पिछले छह सालों से मेले के आयोजन की परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है।