- मध्य प्रदेश में बीजेपी की गलती बनी कांग्रेस के लिए वरदान, उपचुनाव के नतीजों ने बढ़ाई चिंता

मध्य प्रदेश में बीजेपी की गलती बनी कांग्रेस के लिए वरदान, उपचुनाव के नतीजों ने बढ़ाई चिंता

मध्य प्रदेश के विजयपुर विधानसभा उपचुनाव में हार और बुधनी उपचुनाव में वोटों के कम अंतर ने भाजपा की चिंता बढ़ा दी है। उपचुनाव का जनादेश बताता है कि जनता ने दलबदल को नकार दिया है। साथ ही बुधनी में रबर स्टांप की तरह उतारे गए उम्मीदवार को भी जनता का समर्थन नहीं मिला।

मध्य प्रदेश की बुधनी और विजयपुर विधानसभा सीटों के उपचुनाव नतीजों ने भाजपा की चिंता बढ़ा दी है। विधानसभा चुनाव-2023 में अप्रत्याशित बड़ी जीत के एक साल के भीतर ही पार्टी विजयपुर उपचुनाव हार गई।

 

बुधनी जैसी परंपरागत सीट पर भी जीत का अंतर 87 फीसदी कम हो गया। इससे पहले हुए अमरवाड़ा सीट के उपचुनाव में भाजपा ने किसी तरह अपनी साख बचा ली थी। अब सवाल उठ रहे हैं- आखिर ऐसा क्या हो गया कि महज एक साल में ही जनता का भाजपा से मोहभंग हो रहा है।

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दलबदल का खेल पसंद नहीं आया

दरअसल, इस उपचुनाव का संदेश भाजपा के लिए चिंता बढ़ाने वाला है। जनादेश का साफ संदेश है कि पार्टी कार्यकर्ताओं और जनता दोनों को दलबदल का खेल पसंद नहीं है। दूसरे, जनता ने बुधनी में रबर स्टाम्प जैसे उम्मीदवार को भी नकार दिया।

कांग्रेस को इन कमजोरियों का फायदा मिल रहा है। भाजपा की गलतियां कांग्रेस के लिए वरदान बन रही हैं। मध्य प्रदेश में अगला विधानसभा चुनाव भले ही चार साल दूर हो, लेकिन ऐसे नतीजे कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हो सकते हैं। यहां भाजपा की स्थिति यही रही तो पार्टी के लिए गिरावट को रोकना मुश्किल हो जाएगा।

आदिवासी वर्ग की अनदेखी महंगी पड़ी

विजयपुर विधानसभा सीट पर भाजपा हमेशा से आदिवासी वर्ग से प्रत्याशी उतारती रही है, लेकिन इस उपचुनाव में पार्टी ने कांग्रेस से आयातित नेता रामनिवास रावत को मैदान में उतारा। इससे आदिवासी वर्ग नाराज हो गया। सरकार और संगठन ने पूरी ताकत से उपचुनाव लड़ा, लेकिन फिर भी हार का सामना करना पड़ा।

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 यही स्थिति अमरवाड़ा सीट के उपचुनाव में भी हुई, जहां भाजपा ने कांग्रेस विधायक कमलेश शाह को अपने टिकट पर मैदान में उतारा। उपचुनाव में भाजपा किसी तरह जीत गई, लेकिन जनता में गलत संदेश गया कि पार्टी अहंकार की राजनीति कर रही है।

भाजपा की कमजोरी कांग्रेस को मजबूत कर रही है

भाजपा संगठन और सरकार की कार्यप्रणाली में जो कमजोरियां सामने आ रही हैं, वे कांग्रेस को मजबूत कर रही हैं। विजयपुर में कांग्रेस नहीं जीती, बल्कि यह कहना ज्यादा बेहतर होगा कि भाजपा हारी है।

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कांटे की टक्कर वाले उपचुनाव में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रचार से नदारद रहना अपने आप में आश्चर्य की बात है। यहां उनका यह कहना कि मुझे नहीं बुलाया गया, और भी ज्यादा चौंकाने वाला है।

बुधनी जैसे गढ़ में भाजपा की परेशानी बढ़ी

बुधनी विधानसभा सीट पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान का गढ़ मानी जाती है। वे यहां से छह बार विधायक रहे। 2023 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने एक लाख चार हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत दर्ज की।

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उनकी सहमति से रमाकांत भार्गव को उपचुनाव का उम्मीदवार बनाया गया। उन्हें शिवराज सिंह का विश्वासपात्र माना जाता है, लेकिन इससे जनता के बीच एकाधिकार का संदेश गया। रमाकांत भार्गव महज 13,901 वोटों के अंतर से जीत सके। स्वाभाविक है कि आने वाले चुनावों में कांग्रेस यहां अधिक आत्मविश्वास के साथ लड़ेगी।

लाखों कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़ी

कांग्रेस के पास न तो कार्यकर्ता बचे हैं और न ही नेतृत्व। उपचुनाव में उसकी एक जीत 163 सीटों के सामने महत्वहीन है। लोकसभा में मध्य प्रदेश से कांग्रेस का एक भी सांसद नहीं है। लाखों कार्यकर्ता पार्टी छोड़कर चले गए। विजयपुर में भी भाजपा मजबूत हुई है और आगे भी हम यह सीट जीतेंगे। जीतू पटवारी अपने विफल नेतृत्व को छिपाने के लिए श्रेय ले रहे हैं। - आशीष अग्रवाल, मीडिया प्रभारी, भाजपा

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