मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरियों के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं में ली जाने वाली फीस में बढ़ोतरी हो गई है, जिससे युवाओं की आर्थिक स्थिति कमजोर हो रही है। एमपी कर्मचारी चयन बोर्ड (ईएसबी) को हर साल करीब 2.5 करोड़ रुपये मिलते हैं।
मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरी मिले या न मिले, युवाओं की आर्थिक स्थिति जरूर कमजोर होती जा रही है। इसके पीछे वजह यह है कि मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरियों के लिए होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं के नाम पर युवाओं से बार-बार फीस वसूली जा रही है। इससे मप्र कर्मचारी चयन बोर्ड (ईएसबी) को हर साल एक परीक्षा से करीब ढाई करोड़ रुपए की आमदनी होती है।
यह तब है जब तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक बार ही परीक्षा शुल्क लेने की व्यवस्था लागू करने की घोषणा की थी। बोर्ड की एक परीक्षा में औसतन पांच लाख अभ्यर्थी शामिल होते हैं और प्रत्येक सामान्य अभ्यर्थी को 500 रुपए परीक्षा शुल्क जमा करना होता है। जबकि आरक्षित वर्ग के लिए यह शुल्क 250 रुपए निर्धारित है।
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ईएसबी हर साल 10 से अधिक परीक्षाएं आयोजित करता है। परीक्षा में 20 लाख से अधिक छात्र बैठते हैं। कई प्रतियोगी छात्र एक साल में तीन से अधिक परीक्षाओं में अपनी किस्मत आजमाते हैं। हर बार परीक्षा शुल्क का भुगतान करने के अलावा उन्हें अन्य खर्च भी उठाने पड़ते हैं। ऐसे छात्रों की एक परीक्षा पर औसतन 5,000 रुपये का खर्च आता है।
कई सालों से सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों के लिए एक परीक्षा पर इतना खर्च करना आर्थिक दबाव बढ़ा देता है। बताया जा रहा है कि ईएसबी के बचत खाते में 400 करोड़ रुपए जमा हैं। इसके बाद भी परीक्षा शुल्क को लेकर रवैये में कोई बदलाव नहीं आया है।
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वहीं पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में राज्य लोक सेवा आयोग और व्यावसायिक परीक्षा मंडल की सभी परीक्षाएं निशुल्क हो गई हैं। 2022 से पहले सामान्य के लिए परीक्षा शुल्क 500 रुपए और आरक्षित वर्ग के लिए 200 रुपए था। अब वहां किसी भी प्रतियोगी परीक्षा के लिए प्रतिभागी को कोई शुल्क नहीं देना होगा।
अगर सरकार एक बार फीस लेकर अभ्यर्थियों को सभी परीक्षाओं में बैठने की अनुमति देने का आदेश देती है तो बोर्ड उसे स्वीकार कर लेगा। अभी सामान्य विद्यार्थी से 500 रुपए फीस ली जाती है। प्रति अभ्यर्थी परीक्षा का खर्च 550 रुपए आता है। बोर्ड ने 2012 के बाद फीस में कोई बढ़ोतरी नहीं की है।