राज कपूर की पत्नी कृष्णा अपने बच्चों रणधीर, रितु, ऋषि, रीमा और राजीव के साथ छुट्टियों में जबलपुर आती थीं। वे राज कपूर के लिए यहां से खोया जलेबी भी लाती थीं। यहां की नर्मदा नदी को देखकर राज कपूर अभिभूत हो जाते थे।
हिंदी सिनेमा के महान शोमैन और अपने समय के मशहूर अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के बेटे राज कपूर की शादी 1946 में जबलपुर निवासी कृष्णा से हुई थी, जो राय करतारनाथ की बेटी और अभिनेता प्रेमनाथ की बहन थीं। इसलिए मायानगरी मुंबई के निवासी राज कपूर कई बार जबलपुर आए।
इस दौरान नर्मदा दर्शन कर वे अभिभूत हो गए। इसलिए बाद में उन्होंने अपने प्रिय गीतकार मित्र शैलेंद्र की फणीश्वर नाथ रेणु द्वारा लिखित फिल्म तीसरी कसम के कुछ दृश्य जबलपुर में फिल्माए। इस फिल्म के प्रोडक्शन कंट्रोलर शंकर शर्मा, मुख्य साउंड रिकॉर्डिस्ट अलाउद्दीन और कैमरामैन राजेश शर्मा जबलपुर के ही रहने वाले थे।
इसी तरह, जिस लेखक की कहानी पर राज कपूर ने बूट पॉलिश फिल्म बनाई थी, भानु प्रताप नन्होरिया भी जबलपुर के ही थे। राज कपूर के साले, अभिनेता प्रेमनाथ ने जबलपुर के कैंट इलाके में एम्पायर नामक थिएटर के मालिक होने का गौरव प्राप्त किया।
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इतना ही नहीं, उन्होंने इसके बगल की जमीन पर एक बंगला भी बनवाया। राज कपूर और कृष्णा कपूर समेत परिवार के कई सदस्य इस बंगले यानी अपने ससुराल में कई बार रुके। एम्पायर टॉकीज में सभी ने साथ में फिल्में देखीं। जबलपुर निवासी समकालीन कथाकार पंकज स्वामी बताते हैं कि कृष्णा से विवाह के बाद राज कपूर का जबलपुर से नाता और लगाव और गहरा हो गया था।
कृष्णा अपने पांच बच्चों रणधीर, रितु, ऋषि, रीमा और राजीव के साथ अक्सर गर्मी और सर्दी की छुट्टियों में जबलपुर आती थीं। राज कपूर का जबलपुर में प्रवास कुछ खास मौकों पर ही होता था जैसे राय करतारनाथ और प्रेमनाथ के परिवार में शादी के अवसर पर। पांचवें दशक में नाथ परिवार में शादी के अवसर पर राज कपूर के छोटे भाई शम्मी कपूर भी राज कपूर के साथ एम्पायर टॉकीज के बंगले पर जबलपुर आए थे।
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नाथ परिवार की शादी में दोनों भाइयों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था और मेहमानों का स्वागत किया था। बाद में राज कपूर लोगों को गर्व से बताते थे कि वे जबलपुर के दामाद हैं। नर्मदा के प्रति आस्था- जबलपुर प्रवास के दौरान राज कपूर ने प्रेमनाथ के साथ नर्मदा तट के सुंदर दृश्य देखे थे। नर्मदा के दर्शन कर वे धन्य हो गए थे।
नर्मदा के प्रति उनकी आस्था जाग उठी थी। उस समय उन्हें भेड़ाघाट इतना पसंद आया कि उन्होंने वर्ष 1960 में आरके बैनर की जिस देश में गंगा बहती है का एक गाना भेड़ाघाट की संगमरमरी चट्टानों पर फिल्माया था।
इस सीन में साउथ की पद्मिनी पर एक गाना ओ बसंती पवन पागल फिल्माया गया था। इस गाने को लता मंगेशकर ने शंकर-जयकिशन के मधुर संगीत में पूरी एकाग्रता के साथ गाया था। वह पहला मौका था जब देश-विदेश में लोगों ने बंबई की किसी फिल्म में भेड़ाघाट की खूबसूरती देखी।
राजकपूर की खासियत यह थी कि वह अपनी किसी भी फिल्म की धुन को सालों बाद पूरे गाने में इस्तेमाल करते थे। ऐसे कई विषय उनके दिमाग में सालों तक घूमते रहते थे और समय आने पर वह उन्हें फिल्म के विषय के तौर पर पेश करते थे। भेड़ाघाट में जिस देश में गंगा बहती है गाने की शूटिंग के दौरान राजकपूर के दिमाग में नदियों के बारे में ख्याल आने लगे।
पंकज स्वामी बताते हैं कि जब कृष्णा छुट्टियों के बाद जबलपुर से वापस मुंबई जाती थीं, तो परंपरा के मुताबिक उनके मायके वाले उनके साथ ढेर सारी चीजें रखते थे। इनमें जबलपुर की मशहूर खोया जलेबी भी होती थी। राजकपूर मीठा कम खाते थे, लेकिन एक खोया जलेबी जरूर खाते थे।
कृष्णा एक बार खोया जलेबी लेकर आरके स्टूडियो पहुंचीं। उस समय राज कपूर और लता मंगेशकर के बीच एक गाने को लेकर गंभीर चर्चा चल रही थी। लता मंगेशकर कृष्णा कपूर को भाभी कहती थीं। कृष्णा कपूर ने लता मंगेशकर को खोया जलेबी भी ऑफर की. शायद जब लता मंगेशकर ने अपने जीवन में पहली बार जबलपुर की खोया जलेबी खाई तो वह खुशी से झूम उठीं।