खबर मध्य प्रदेश के ग्वालियर से है। मामला 6 साल पुराना है। यहां स्नेहालय संस्था में मूक-बधिर लड़की से दुष्कर्म हुआ। कोर्ट में केस के दौरान पीड़िता के बयान निर्णायक साबित हुए। हालांकि, यह इतना आसान नहीं था। जब ग्वालियर के विशेषज्ञ पीड़िता की बात नहीं समझ पाए तो इंदौर से अनुवादक को बुलाया गया।
मूक-बधिर बच्चों की संस्था स्नेहालय कांड में 6 साल बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। इस मामले में मूक-बधिर बच्ची से दुष्कर्म करने वाले चौकीदार को मृत्यु तक आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। इसके अलावा स्नेहालय के संचालक डॉ. बीके शर्मा, भावना शर्मा, प्रभा यादव और रवि वाल्मीकि को 10-10 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई है।
प्रथम अपर सत्र न्यायालय डबरा की विशेष न्यायाधीश एमपीवीडीके एक्ट ज्योति राजपूत ने यह फैसला सुनाया है। फैसले में सबसे अहम कड़ी पीड़िता और गवाह के बयान रहे।
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पीड़िता मूक-बधिर थी, जिसके कारण उसका बयान दर्ज नहीं हो सका, कई अनुवादक बुलाए गए, लेकिन अनुवाद नहीं हो सका। इसके बाद विशेष लोक अभियोजक ने इंदौर से अनुवादक बुलाया, जिसके बाद अभियोजक ने जज के सामने पीड़िता से सवाल पूछे और पीड़िता ने अनुवादक को इशारों में पूरी घटना बताई। जून 2024 में दिए गए इन बयानों के आधार पर आरोपियों को सजा सुनाई गई।
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तत्कालीन टीआई बिलौआ थाना अमित सिंह भदौरिया की टीम ने मामले की जांच की थी। पुलिस ने 87 दिन में चालान पेश किया था। एफआईआर की रात ही डॉ. बीके शर्मा को गिरफ्तार कर लिया गया था।
विशेष लोक अभियोजक हरिओम वर्मा ने बताया कि वे इस मामले में डबरा में पदस्थ थे और कई दिनों तक अनुवादक उपलब्ध नहीं होने पर इंदौर से अनुवादक बुलाया गया था। एक माह पहले उनका तबादला हो गया था। इस मामले में पीड़िता और गवाह के बयान के आधार पर सजा सुनाई गई। 9 तारीख को मामला दर्ज किया गया था।