- अखाड़े की कहानी: आह्वान अखाड़े के साधु भिक्षा नहीं मांगते, धर्म की रक्षा के लिए लड़ते हैं युद्ध

अखाड़े की कहानी: आह्वान अखाड़े के साधु भिक्षा नहीं मांगते, धर्म की रक्षा के लिए लड़ते हैं युद्ध

महाकुंभ 2025: अखाड़े के संतों का मानना ​​है कि अगर हाथ फैलाने ही हैं तो भगवान के सामने ही फैलाओ. किसी भी इंसान के सामने हाथ फैलाना स्वाभिमान के खिलाफ है. इस अखाड़े का ये सख्त नियम है कि अगर कोई स्वेच्छा से कुछ देता है तो ठीक है. अगर ऐसा नहीं होता है तो भूखे रहना मंजूर है, लेकिन आप कुछ मांग नहीं सकते.

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महाकुंभ 2025: यूपी के प्रयागराज में महाकुंभ 2025 में करोड़ों लोग पहुंचने वाले हैं.

 

इससे पहले संतों के अखाड़े वहां प्रवेश कर चुके हैं. जूना अखाड़ा, आह्वान अखाड़ा समेत कई ऐसे अखाड़े महाकुंभ में पहुंच रहे हैं. इन अखाड़ों के संतों के दर्शन के लिए लोग भी उत्सुक हैं. इन्हीं अखाड़ों में से एक अखाड़ा श्री शंभू पंचदशनाम आह्वान अखाड़ा भी है, जिसकी कहानी बेहद दिलचस्प है. इस अखाड़े की स्थापना 547 ईस्वी में हुई थी. महंत रत्न गिरि, श्रीमहंत हंस दीनानाथ गिरि, श्रीमहंत मारीच गिरि और कई अन्य संतों ने इसकी नींव रखी. यह अखाड़ा मुगल काल से लेकर ब्रिटिश काल तक धर्म की रक्षा के लिए लड़ता रहा है. इस अखाड़े के संत धर्म की रक्षा के लिए संघर्ष का आह्वान करते थे.

इसी वजह से इसका नाम आह्वान अखाड़ा पड़ा. शुरुआती दौर में इसका नाम आह्वान सरकार था. साधु भिक्षा नहीं मांगते, सिर्फ भगवान के सामने हाथ फैलाते हैं श्री शंभू पंचदशनाम आह्वान अखाड़े के साधु कभी भिक्षा नहीं मांगते. यह इस अखाड़े की परंपरा है और अगर कोई इसे तोड़कर भिक्षा या दान मांगता है तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की जाती है. इस अखाड़े के संतों का मानना ​​है कि अगर हाथ फैलाना ही है तो भगवान के सामने ही फैलाओ.

 

किसी भी इंसान के सामने हाथ फैलाना स्वाभिमान के खिलाफ है.

इस अखाड़े का यह सख्त नियम है कि अगर कोई स्वेच्छा से कुछ देता है तो ठीक है. अगर ऐसा नहीं होता है तो भूखे रहना मंजूर है, लेकिन हम कुछ नहीं मांग सकते। 547 ई. में जब अखाड़े की स्थापना हुई थी, तब इससे करीब 400 साधु जुड़े थे, लेकिन धीरे-धीरे इसका विस्तार होता गया।

सनातन के दुश्मनों के खिलाफ लड़ाई का आह्वान करते हैं

श्री शंभू पंचदशनाम आह्वान अखाड़े की शाखाएं प्रयागराज, वाराणसी, उज्जैन, नासिक और हरिद्वार जैसे धार्मिक शहरों में हैं। भगवा ध्वज लेकर चलने वाले इस अखाड़े के साधुओं ने इस समय धर्म परिवर्तन के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है। इस अखाड़े से जुड़े साधुओं को भाला, त्रिशूल, कुल्हाड़ी जैसे हथियार चलाना भी सिखाया जाता है। इस समय इस अखाड़े से कई हजार साधु जुड़े हुए हैं, जो देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रवास करते हैं।

 

यह अखाड़ा अपनी स्थापना के समय से ही आक्रामक रहा है।

इसने अक्सर राष्ट्र विरोधी और धर्म विरोधी दुश्मनों के खिलाफ लड़ाई का आह्वान किया है। इतना ही नहीं, कहा जाता है कि अखाड़े ने अपने साधुओं के जत्थों को गुजरात, केरल, महाराष्ट्र, बंगाल और बिहार जैसे राज्यों में भेजा था। इसका उद्देश्य धर्म का प्रचार-प्रसार करना और धर्म परिवर्तन रोकना था। भिक्षा मांगने पर कई संतों पर हुई कार्रवाई इस अखाड़े के संतों ने मुगल काल में भी कई युद्ध लड़े थे। आपको बता दें कि अंग्रेजों के खिलाफ शुरुआती संघर्षों में से एक संन्यासी विद्रोह था, जिसमें बड़ी संख्या में साधु-संतों ने भी हथियार उठाए थे।

 

आह्वान अखाड़ा इसी परंपरा से जुड़ा है, जो मानता है कि सनातन की रक्षा के लिए शस्त्र और शास्त्र दोनों में पारंगत होना जरूरी है। इस अखाड़े में भिक्षा मांगने वाले साधुओं के लिए कोई जगह नहीं है। कई ऐसे साधु हैं, जो भिक्षा मांगने पर सभी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए थे। इनमें श्रीमहंत कौशल गिरि, श्रीमहंत हरीश्वरानंद पुरी, श्रीमहंत रत्नानंद गिरि, जयपुर के श्रीमहंत शंकर भारती आदि शामिल हैं। इस अखाड़े के मुखिया श्रीमहंत होते हैं। उनके बाद अष्ट कौशल, थानापति और दो पंच होते हैं। इनके अलावा पांच सरदार नियुक्त होते हैं। इसमें कोतवाल, भंडारी, कोठारी, व्यापारी और पुजारी शामिल होते हैं।

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