- जमात-ए-इस्लामी हिंदुओं से जजिया कर वसूल रहा है... क्या कभी भारत का मित्र रहा बांग्लादेश इस्लामिक देश बन जाएगा?

जमात-ए-इस्लामी हिंदुओं से जजिया कर वसूल रहा है... क्या कभी भारत का मित्र रहा बांग्लादेश इस्लामिक देश बन जाएगा?

शेख हसीना सरकार के दौरान 2013 में जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने 28 अगस्त, 2024 को प्रतिबंध हटाने की अधिसूचना जारी की।

बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के कार्यकाल में देश को इस्लामी राष्ट्र बनाने की दिशा में कदम तेज़ हो गए हैं। सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी जमात-ए-इस्लामी अब देश में शरिया कानून लागू करने की कोशिश कर रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई समर्थित इस संगठन ने हिंदुओं और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों पर जजिया कर लगाना शुरू कर दिया है। इस फैसले को बांग्लादेश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को इस्लामी शासन में बदलने का संकेत माना जा रहा है। खास बात यह है कि यूनुस सरकार इस पूरे मामले पर चुप है।

1 अगस्त से जजिया कर वसूली शुरू
ब्लिट्ज़ के संपादक सलाहुद्दीन शोएब चौधरी की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट के अनुसार, जमात-ए-इस्लामी ने 1 अगस्त, 2025 से हिंदुओं और गैर-मुसलमानों से जजिया कर वसूलना शुरू कर दिया है। इससे पहले 25 जुलाई को जमात प्रमुख डॉ. शफीकुर्रहमान ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी कि गैर-मुसलमानों को भी यह कर देना होगा, ठीक वैसे ही जैसे मुसलमान ज़कात देते हैं।

रहमान का विवादास्पद बयान

एक बैठक में डॉ. शफीकुर्रहमान ने कहा कि अगर बांग्लादेश में सभी समुदाय समान अधिकार चाहते हैं, तो हिंदुओं और गैर-मुसलमानों को जजिया कर देना होगा। उन्होंने दावा किया कि शरिया कानून के अनुसार यह सही है। रहमान ने कहा कि जिस तरह मुसलमान अपनी संपत्ति का एक हिस्सा धार्मिक उद्देश्यों के लिए ज़कात के रूप में देते हैं, उसी तरह गैर-मुसलमानों को भी जजिया देना चाहिए।

जजिया कर का क्या अर्थ है?

जजिया एक इस्लामी कर है, जो गैर-मुसलमानों पर लगाया जाता है। मध्ययुगीन इस्लामी शासन में यह आम बात थी और आलोचकों ने इसे हमेशा गैर-मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की नीति माना है। वर्तमान बांग्लादेश में इसकी शुरुआत को देश के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों से हटकर इस्लामी शासन लागू करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

जमात-ए-इस्लामी का विवादास्पद इतिहास
बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी का इतिहास विवादों और क्रूरता से जुड़ा है। 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान इसने पाकिस्तान का समर्थन किया और पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर बंगाली नागरिकों के नरसंहार में शामिल रहा। आज भी इस संगठन को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और कई इस्लामी-जिहादी संगठनों का समर्थन प्राप्त है। यही वजह है कि बांग्लादेश में मौजूदा हालात को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।

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