अब तक की जांच का हवाला देते हुए ईडी ने बताया है कि डीएमएफ घोटाला 90 करोड़ 48 लाख रुपए का है। चार्जशीट में जेल में बंद निलंबित आईएएस रानू साहू, महिला एवं बाल विकास विभाग की पूर्व अधिकारी माया वारियर, दलाल मनोज कुमार द्विवेदी समेत 16 आरोपियों के नाम हैं।
बहुचर्चित खनिज जिला न्यास निधि (डीएमएफ) घोटाला मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सोमवार को विशेष कोर्ट में 8 हजार 21 पन्नों की पहली चार्जशीट पेश की। यह मामला पिछली भूपेश बघेल सरकार के दौरान सामने आया था।
चार्जशीट में अब तक की जांच का हवाला देते हुए ईडी ने अनुमान लगाया है कि डीएमएफ घोटाला 90 करोड़ 48 लाख रुपए का है। चार्जशीट में जेल में बंद निलंबित आईएएस रानू साहू, महिला एवं बाल विकास विभाग की पूर्व अधिकारी माया वारियर, दलाल मनोज कुमार द्विवेदी समेत 16 आरोपियों के नाम हैं।
ईडी सूत्रों ने बताया कि विशेष अदालत में पेश अभियोजन चालान में 169 पन्नों की अभियोजन शिकायत और 7,852 आरयूडी दस्तावेज शामिल हैं।
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सोमवार को ईडी की चार दिन की रिमांड पूरी होने के बाद कारोबारी और एनजीओ सचिव मनोज कुमार द्विवेदी को विशेष अदालत में पेश किया गया। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने मनोज को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेजने का आदेश दिया।
ईडी की जांच में पता चला है कि वर्ष 2021-22 और 2022-23 में मनोज कुमार द्विवेदी ने रानू साहू और अन्य अधिकारियों के साथ मिलीभगत की थी। उसने अपने एनजीओ उद्गम सेवा समिति के नाम पर कई डीएमएफ ठेके हासिल किए थे। उसने अधिकारियों को टेंडर राशि का 40 प्रतिशत तक कमीशन दिया था।
द्विवेदी ने डीएमएफ फंड का गबन कर 17 करोड़ 79 लाख रुपए कमाए, जिसमें से 6 करोड़ 57 लाख रुपए उसने अपने पास रख लिए। बाकी रकम उसने अधिकारियों को रिश्वत के तौर पर दे दी। उसने जिला स्तर के अधिकारियों से मिलीभगत कर ठेका दिलाने में भी मदद की।
निलंबित आईएएस अधिकारियों के नाम हैं रानू साहू, माया वारियर, मनोज कुमार द्विवेदी, भुवनेश्वर सिंह राज, भरोसा राम ठाकुर, वीरेंद्र कुमार राठौड़, राधेश्याम मिर्जा, श्रीकांत दुबे, संजय शिंदे, हरीशब सोनी, राकेश कुमार शुक्ला, अशोक अग्रवाल, मुकेश कुमार अग्रवाल, विनय कुमार अग्रवाल, ललित राठी और तोरणलाल चंद्राकर।
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ईडी की रिपोर्ट के आधार पर ईओडब्ल्यू ने घोटाले में धारा 120बी 420 के तहत मामला दर्ज किया है। मामले में खुलासा हुआ है कि जिला खनिज निधि कोरबा की राशि से टेंडर आवंटन में बड़े पैमाने पर घोटाला किया गया है। निविदाकर्ताओं को अवैध लाभ दिया गया। जांच में पता चला है कि टेंडर राशि का 40 फीसदी कमीशन के रूप में सरकारी अधिकारी को दिया गया।