अंटार्कटिका में खून का झरना: अंटार्कटिका में टेलर ग्लेशियर के पास खून के रंग का यह झरना करीब 110 साल पहले खोजा गया था। वैज्ञानिकों के अनुसार, यहां ग्लेशियर के नीचे आयरन युक्त पानी है, जो ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया करता है, जिसके कारण इसका रंग खून जैसा लाल हो जाता है। पिछले 500 सालों में इंसानों ने धरती के हर महाद्वीप पर अपने निशान छोड़े हैं।
लेकिन अंटार्कटिका आज भी इंसानों के लिए एक पहेली बना हुआ है। कई मीटर मोटी बर्फ के नीचे क्या छिपा है, इसका पता लगाना मुश्किल है। आज भी धरती पर सबसे रहस्यमयी जगहों में अंटार्कटिका का नाम आता है। इस जमे हुए महाद्वीप पर आज भी कई रहस्य सामने आते हैं, जो वैज्ञानिकों को भी हैरान कर देते हैं।
ऐसा ही एक रहस्य है यहां बहने वाला एक झरना जिसे खून का झरना कहा जाता है। अंटार्कटिका के टेलर ग्लेशियर के नीचे से वेस्ट लेक बोनी में बहने वाला यह झरना अपने खून के लाल रंग के कारण चर्चा में है। इस झरने की खोज करीब 110 साल पहले तब हुई थी, जब एक ऑस्ट्रेलियाई भूविज्ञानी थॉमस ग्रिफिस टेलर ने अंटार्कटिका की अपनी यात्रा के दौरान इसकी खोज की थी। 1911 में टेलर और उनकी टीम ने लाल रंग देखा और हैरान रह गए।
शुरू में भूगर्भशास्त्रियों का मानना था कि लाल शैवाल की अधिकता के कारण यहां की बर्फ का रंग खून जैसा लाल हो गया है। लेकिन बाद में एक दशक बाद यानी 2003 में इसकी सच्चाई सामने आई। 2003 में एक समूह ने इसके लाल रंग की जांच की। इस जांच में पता चला कि झरने में आयरन ऑक्साइड की मात्रा बहुत अधिक है।
ग्लेशियर के नीचे का खारा पानी जब हवा के संपर्क में आता है तो यह एक अकार्बनिक यौगिक बन सकता है। शोध के अनुसार, यहां एक एक्सट्रीमोफाइल माइक्रोबियल इकोसिस्टम मौजूद है, जिसके कारण यहां नमक का स्तर समुद्री नमक से कहीं अधिक है।
ग्लेशियर के नीचे मौजूद आयरन युक्त पानी बर्फ से रिसकर ऊपर आता है। जैसे ही यह ऊपर मौजूद नमक और हवा के संपर्क में आता है, यह ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया करता है, जिसके कारण इसका रंग लाल दिखाई देता है। यहां मौजूद बाकी जानवर सदियों से बर्फ में रहने के कारण खुद को ठंड के अनुकूल बना चुके हैं।