पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद कांग्रेस ने भाजपा को घेरने की कोशिश की। कांग्रेस ने जेपी नड्डा पर भी गंभीर आरोप लगाए।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा मंगलवार (22 जुलाई) को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने स्वीकार कर लिया। धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपना पद छोड़ा है, लेकिन विपक्ष ने कुछ और ही आरोप लगाए हैं। कांग्रेस नेता सुखदेव भगत ने कहा कि इस्तीफे की पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी। हालाँकि, असली बात कुछ और ही है। एनडीटीवी की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि धनखड़ को एक फोन आया और उसके बाद जो हुआ, वह सबने देखा।
दरअसल, विपक्ष जज यशवंत वर्मा को हटाने का प्रस्ताव लेकर आया है। जस्टिस वर्मा के घर से भारी मात्रा में नकदी बरामद हुई थी। सोमवार को जब मानसून सत्र शुरू हुआ, तो विपक्षी सांसदों ने एक नोटिस पेश किया। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने इस नोटिस को स्वीकार कर लिया और सदन के महासचिव से आवश्यक कदम उठाने को कहा। रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार को यह कदम पसंद नहीं आया।
क्या धनखड़ को केंद्र सरकार ने बुलाया था?
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि केंद्र सरकार ने उपराष्ट्रपति को फ़ोन करके यह मुद्दा उठाया। उपराष्ट्रपति ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी और बातचीत बहस में बदल गई। बहस के दौरान उपराष्ट्रपति ने अपने पद की शक्तियों का हवाला भी दिया। इस फ़ोन कॉल के बाद, धनखड़ के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाने की चर्चा शुरू हो गई। यह विपक्ष द्वारा उपराष्ट्रपति के ख़िलाफ़ इसी तरह का प्रस्ताव लाए जाने के ठीक छह महीने बाद हुआ। धनखड़ को इसका एहसास हुआ और उन्होंने ख़ुद ही इस्तीफ़ा दे दिया।
जब सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों जस्टिस वर्मा को हटाने पर आमादा हैं, तो समस्या कहाँ है?
सोमवार को मानसून सत्र के पहले दिन सरकार लोकसभा में जस्टिस वर्मा के ख़िलाफ़ प्रस्ताव लेकर आई। इस दौरान सत्ता पक्ष के 152 सांसदों ने जस्टिस वर्मा के ख़िलाफ़ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए। वहीं, विपक्ष राज्यसभा में भी प्रस्ताव लेकर आया। इसमें 63 सांसदों ने जस्टिस वर्मा के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव का समर्थन किया। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों जस्टिस वर्मा को हटाने पर आमादा हैं, लेकिन श्रेय लेने की होड़ मची हुई है।