सौर स्लज तकनीक के प्रमुख लाभ, स्लज निपटान की समस्या का समाधान, सतत कृषि एवं उद्यान विकास को बढ़ावा, प्रदूषण में कमी और स्वच्छता में सुधार, ग्रीन मिशन को नई ऊर्जा प्रदान करेंगे।
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण अब सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से निकलने वाले स्लज को भी उपयोगी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठा रहा है। प्राधिकरण की योजना आधुनिक सौर तकनीक के माध्यम से इस स्लज को जैविक खाद में बदलने की है, ताकि न केवल अपशिष्ट कम हो, बल्कि इसका पुन: उपयोग भी सुनिश्चित हो। इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए आईआईटी दिल्ली से एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार कराई जा रही है, जिसके अगले सप्ताह तक उपलब्ध होने की संभावना है।
यह योजना प्राधिकरण के सीईओ एन.जी. रवि कुमार के निर्देश पर बनाई गई है। उनका उद्देश्य न केवल उपचारित जल का पुन: उपयोग करना है, बल्कि एसटीपी से निकलने वाले ठोस अपशिष्ट (स्लज) का भी उपयोग करना है। इसी क्रम में, प्राधिकरण के सीवर विभाग की टीम ने गोवा में प्रचलित सोलर ड्राई स्लज मैनेजमेंट (एसडीएसएम) तकनीक का अध्ययन किया, जहाँ इस पद्धति का पहले से ही सफलतापूर्वक उपयोग किया जा रहा है।
वरिष्ठ प्रबंधक विनोद कुमार शर्मा ने बताया कि एसडीएसएम तकनीक के तहत गीले स्लज को सूर्य की गर्मी से सुखाकर मात्र पाँच दिनों में चूर्ण के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है, जिसे जैविक खाद में परिवर्तित कर बगीचों, हरित पट्टियों और वृक्षारोपण परियोजनाओं में उपयोग किया जाएगा। शुरुआत में इस तकनीक को प्रयोग के तौर पर कासना स्थित 137 एमएलडी क्षमता वाले एसटीपी में लागू किया जाएगा। सफल होने पर इसे बादलपुर (2 एमएलडी), इकोटेक-2 (15 एमएलडी) और इकोटेक-3 (20 एमएलडी) एसटीपी में भी लागू किया जाएगा।
दूसरी ओर, सौर स्लज तकनीक के प्रमुख लाभ, स्लज निपटान की समस्या का समाधान, सतत कृषि और उद्यान विकास को बढ़ावा, प्रदूषण में कमी और स्वच्छता में सुधार, ग्रीन मिशन को नई ऊर्जा प्रदान करेंगे।
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की एसीईओ प्रेरणा सिंह ने बताया कि सौर शुष्क स्लज प्रबंधन तकनीक के संबंध में डीपीआर का इंतजार है। इससे स्लज को जैविक खाद में परिवर्तित करके पर्यावरण संतुलन में मदद मिलेगी।