- 'प्राचीन ज्ञान किताबों या दीवारों तक सीमित नहीं रहेगा', मन की बात में पीएम मोदी ने 'ज्ञान भारतम मिशन' का किया जिक्र

'प्राचीन ज्ञान किताबों या दीवारों तक सीमित नहीं रहेगा', मन की बात में पीएम मोदी ने 'ज्ञान भारतम मिशन' का किया जिक्र

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान का जिक्र करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि वहाँ पहली बार 'ग्रासलैंड बर्ड सेंसस' किया गया है, जिसमें कई दुर्लभ पक्षी भी शामिल हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार (27 जुलाई, 2025) को 'मन की बात' कार्यक्रम के 124वें एपिसोड में देशवासियों को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने भारत की समृद्ध ज्ञान परंपरा और जैव विविधता के संरक्षण के लिए दो महत्वपूर्ण प्रयासों पर प्रकाश डाला। 'ज्ञान भारतम मिशन' की घोषणा को ऐतिहासिक पहल बताते हुए उन्होंने कहा कि यह मिशन आने वाली पीढ़ियों को भारत की आत्मा से जोड़ने का माध्यम बनेगा।

देशवासियों को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि भारत की समृद्ध ज्ञान परंपरा और जैव विविधता को बचाने के लिए देशभर में प्रयास किए जाएँगे। इससे हमारा प्राचीन ज्ञान किताबों या दीवारों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि नई पीढ़ी की सोच का हिस्सा बनेगा। इसी विचार से प्रेरित होकर सरकार ने इस साल के बजट में 'ज्ञान भारतम मिशन' की शुरुआत की है। इस मिशन के तहत, देश भर में बिखरी प्राचीन पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण किया जाएगा। इसके बाद, एक राष्ट्रीय डिजिटल संग्रह तैयार किया जाएगा, जहाँ न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर के छात्र और शोधकर्ता भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़ सकेंगे। उन्होंने लोगों से इस पहल में सक्रिय रूप से भाग लेने की अपील की।

सरकार से जुड़ने का तरीका बताया

पीएम मोदी ने कहा कि अगर आप ऐसे किसी प्रयास से जुड़े हैं या जुड़ना चाहते हैं, तो MyGov या संस्कृति मंत्रालय से संपर्क करें, क्योंकि ये सिर्फ़ पांडुलिपियाँ नहीं हैं, ये भारत की आत्मा के अध्याय हैं जिन्हें हमें आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाना है। असम के प्रसिद्ध काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान का ज़िक्र करते हुए पीएम मोदी ने एक अनोखे प्रयास की सराहना की। उन्होंने बताया कि काजीरंगा, जो आमतौर पर अपने एक सींग वाले गैंडों के लिए प्रसिद्ध है, में पहली बार 'ग्रासलैंड बर्ड सेंसस' आयोजित किया गया है।

प्रौद्योगिकी की मदद से प्रकृति को समझना हुआ आसान

उन्होंने कहा कि आपको यह जानकर खुशी होगी कि इस सेंसस में 40 से ज़्यादा पक्षी प्रजातियों की पहचान की गई, जिनमें कई दुर्लभ पक्षी भी शामिल हैं। यह सब तकनीक की मदद से संभव हुआ। टीम ने ध्वनि रिकॉर्डिंग उपकरण लगाए और फिर एआई (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) तकनीक का उपयोग करके कंप्यूटर पर उन ध्वनियों का विश्लेषण किया। इस प्रक्रिया में, पक्षियों को बिना छेड़े, केवल उनकी आवाज़ से ही पहचाना गया। यह उदाहरण दर्शाता है कि जब तकनीक और संवेदनशीलता एक साथ आते हैं, तो प्रकृति को समझना और भी आसान हो जाता है।

उन्होंने ऐसे प्रयासों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर बल दिया ताकि भारत की जैव विविधता की पहचान अक्षुण्ण रहे और आने वाली पीढ़ियाँ इससे जुड़ी रहें।

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