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अंटार्कटिका में तेजी से धंस रही बर्फ, सिर्फ जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार नहीं
इसके लिए मात्र जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार नहीं
वाशिंगटन । अंटार्कटिका की समुद्री बर्फ लगातार और तेजी से घट रही है। पिछले कुछ समय में इसके धंसने की दर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। दुनियाभर के पर्यावरणविद अंटार्कटिका में तेजी से घट रही बर्फ को लेकर काफी चिंतित हैं।बड़ी बात ये है कि यहां बर्फ के तेजी से घटने में सिर्फ जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार नहीं है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सेटेलाइट डाटा के अनुसार बीते चार दशक के दौरान अंटार्कटिका में बड़े बदलाव हुए हैं। पिछले कुछ साल में गर्मियों के मौसम में यहां बर्फ की मात्रा में काफी गिरावट दर्ज की गई है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, बर्फ का लगातार और तेजी से धंसना काफी दिक्कतें पैदा कर सकता है।वैज्ञानिकों का कहना है कि अंटार्कटिका में बर्फ का घटकर रिकॉर्ड स्तरपर पहुंच जाना भविष्य के लिए चिंताजनक है। पृथ्वी की जलवायु पर इस बदलाव का असर बहुत लंबे समय तक दिखाई दे सकता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण अंटार्कटिका में गर्मियों के मौसम के दौरान समुद्र की बर्फ 13 फीसदी तक कम हो रही है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इसके लिए जलवायु परिवर्तन के साथ ही मानवीय गतिविधियां भी जिम्मेदार हैं। रिसचर्स के मुताबिक, अंटार्कटिका में जिस तेजी से समुद्री बर्फ कम हो रही है, उसके लिए ओजोन पर्त में छेद और ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ता हुआ उत्सर्जन भी जिम्मेदार है।अंटार्कटिका में 19वीं शताब्दी के दौरान भी हालात काफी बिगड़ गए थे। हालांक, तब यहां के हालात में काफी जल्दी सुधार आ गया था। इस बार ऐसा नहीं है। इस बार अंटार्कटिका क्षेत्र में रिकॉर्ड बदलाव नजर आ रहे हैं। इसके लिए गर्म हवाओं को भी जिम्मेदार माना जा रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि समुद्री बर्फ में मौजूदा रिकॉर्ड गिरावट प्रायद्वीप के पश्चिम और पूर्व में लगातार चल रही गम्र हवाओं के कारण आ रही है। अलग-अलग कारणों से धरती के बढ़ते तापमान के कारण इस क्षेत्र का औसत तापमान लंबे समय तक 1.5 डिग्री सेल्सियस बना रहा। इससे भी यहां की बर्फ में लगातार कमी दर्ज की जा रही है।अंटार्कटिका में सदर्न एनुलर माड चारों तरफ से वायुमंडल में दबाव बनाती है। इससे घुमावदार पश्चिमी हवाओं पर असर पड़ता है। इससे भी क्षेत्र में बड़े बदलाव हो रहे हैं। बता दें कि अंटार्कटिका दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा महाद्वीप है। प्राकृतिक तौर पर काफी खुबसूरत होने के बाद भी बेहद ठंड के कारण ये क्षेत्र पूरी तरह से निर्जन है। इस क्षेत्र में सिर्फ वैज्ञानिक, शोधकर्ता और खोजी दल ही सक्रिय रहते हैं। हालांकि, ये धरती के दूसरे महाद्वीपों की तुलना में काफी संवेदनशील माना जाता है। अंटार्कटिका में किसी भी प्रकार की मानवीय गतिविधि इस क्षेत्र के प्राकृतिक स्वरूप से छेड़छाड़ मानी जाती है।अंटार्कटिका में अमूमन जब भी कोई बड़ा बदलाव होता है तो उसे प्राकृतिक रूप में फिर से वापस लौटने में बहुत ज्यादा समय लग जाता है। इस इलाके में सफेद बफ के रेगिस्तान के अलावा जंगल और जंगली जी-जंतु भी मौजूद हैं। पर्यावरणविदों की माने तो बढ़ते प्रदूषण के कारण पूरी दुनिया का पर्यावरण बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। आर्कटिक और अंटार्कटिका भी इससे अछूते नहीं हैं। अंटार्कटिका की जलवायु बड़े बदलाव के कारण संकट में नजर आ रही है। बता दें कि पहले भी इस क्षेत्र में बर्फ धंसने की बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं। अब से पहले पिछले साल और 2017 में अंटार्कटिका के समुद्र की बर्फ रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई थी।
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