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श्मशान में जलती चिताओं का बीच नगर वधुओं का डांस, तस्वीरें देख हैरान रह जाएंगे
वाराणसी। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी, कशी विश्वनाथ मंदिर तथा इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। यहां चिता की राख से होली खेली जाती है। काशी में मृत्यु को मंगल भी माना जाता है। उसी काशी की 400 साल पुरानी एक परंपरा है, जिसमें नगर वधुएं जलती चिताओं के बीच मणिकर्णिका घाट पर नृत्य करती हैं।मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि की सप्तमी तिथि पर आधी रात महाशमशान मणिकर्णिका घाट पर नगर वधुओं का नृत्य शुरू हुआ जो पूरी रात चला। जलती चिताओं के बीच नगर-वधुओं ने मनमोहक डांस किया। पूरी रात श्मशान पर बैठकर लोगों ने बड़े उत्साह के साथ यह नृत्य देखा। साथ ही पैसे भी उड़ाए। कुछ लोगों ने इसे आध्यात्मिक स्थल पर फूहड़ और अश्लील डांस बताया तो कुछ ने कहा कि काशी की 400 साल पुरानी परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है।माना जाता है कि 14वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में काशी आए राजा मान सिंह ने मणिकर्णिका तीर्थ पर श्मशान नाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया, तो मंगल उत्सव के लिए नगर के संगीतज्ञों को भी आमंत्रित किया। कतिपय पूर्वाग्रही हिचक के चलते स्थापित कलाकारों ने मंगल उत्सव में भाग लेने से मना कर दिया। इस बात को लेकर राजा मानसिंह बहुत दुखी हुए। धीरे-धीरे यह बात पूरे नगर में फैल गई। इस बात की भनक नगर बधुओं को लगी तो उन्होंने मानसिंह को संदेश दिया यदि उनको मौका मिले तो काशी की सभी नगर वधुएं अपने आराध्य संगीत के जनक नटराज महाश्मसानेश्वर को अपनी भावाजंली प्रस्तुत कर सकती हैं। इस संदेश से राजा मानसिंह काफी प्रसन्न हुए और पूरे सम्मान के साथ नगर वधुओं को आमंत्रित किया। तब से ही जलती चिताओं के बीच मणिकर्णिका घाट पर नगर वधुओं के नृत्य की परंपरा चल रही है
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