- सेना में जवानों से इतना ज्यादा दिव्यांग कैसे हो जाते हैं अफसर? कैग ने आर्मी पेंशन पर कह दी बड़ी बात

सेना में जवानों से इतना ज्यादा दिव्यांग कैसे हो जाते हैं अफसर? कैग ने आर्मी पेंशन पर कह दी बड़ी बात

नई दिल्ली। सेना के जितने अधिकारी हर साल रिटायर होते हैं, उनमें से 30 से 40 प्रतिशत दिव्यांगता पेंशन उठाते हैं। लेकिन जवानों के मामले में यह आंकड़ा 15 से 18 प्रतिशत तक सीमित है। इतना ही नहीं, रिटायरमेंट के बाद डिजेबिलिटी पेंशन लेने वाले अफसरों में भी 44 से 58 प्रतिशत हिस्सेदारी सिर्फ मेडिकल अफसरों (मुख्य रूप से डॉक्टरों) की है। कंप्ट्रोलर एंड ऑडिर जनरल (कैग) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में ये आंकड़े दिखाते हुए रक्षा मंत्रालय और थल सेना मुख्यालय से इसकी वजह का पता लगाने को कहा है। कैग की रिपोर्ट संसद में पेश की गई है।
कैग ने रक्षा मंत्रालय और आर्मी हेडक्वॉर्टर से इसका पता लगाने को कहा है कि आखिर रिटायरमेंट के बाद डिजेबिलिटी पेंशन लेने वाले अफसरों और खासकर मेडिकल अफसरों की इतनी बड़ी तादाद होने के पीछे क्या कारण हैं? रिपोर्ट कहती है, रिटायरमेंट के बाद डिजेबिलिटी पेंशन लेने वाले 22 प्रतिशत अफसरों और अधिकारियों की श्रेणी से नीचे वाले 13 प्रतिशत कर्मियों को तो जीवनशैली से जुड़ी समस्याओं मसलन हाइपरटेंशन, टाइप-2 डाइबिटीज आदि के आधार पर फायदा दिया जा रहा है। कैग ने कहा, मंत्रालय डिफेंस फोर्सेज में लाइफस्टाइल से संबंधित बीमारियों सहित डिजेबिलिटी के प्रमुख कारणों का सही विश्लेषण करने के लिए सभी जरूरी सूचनाओं का एक कंप्लीट डेटाबेस तैयार करे ताकि जरूरत पड़ने पर संभावित सुधार के कदम उठाए जा सकें।कैग ने 2015-16 से 2019-20 के रिकॉर्ड्स खंगालने के बाद कहा कि रिटायर हुए कुल 6,388 अफसरों में 2,446 अफसरों को डिजेबिलिटी पेंशन का हकदार माना गया। इस दौरान ऑफिसर रैंक से निचले दर्जे के कुल 2.98 लाख कर्मी रिटायर हुए। इनमें 48,311 कर्मियों की ही डिजेबिलिटी पेंशन स्वीकृत हुई। उधर, 683 रिटायर्ड मेडिकल अफसरों में 345 के लिए यह पेंशन पास हो गई। कैग ने इस आधार पर रक्षा मंत्रालय से पूछा है कि क्या उसने कभी यह जानने की कोशिश की है कि आखिर इतनी भारी संख्या में रिटायर अफसरों के अपाहिज होने के दावे कैसे स्वीकार किए जा रहे हैं और क्या उसने इस मुद्दे के सामाधान का कोई रास्ता निकाला है।कई सैनिक काफी ऊंचाई पर ड्यूटी के दौरान जख्मी होते हैं और उन्हें बेहद तनाव गुजरना पड़ता है। यह भी सच है कि उग्रवादियों के खिलाफ अभियानों का लगातार हिस्सा बनने वाले और जिनकी परिवार से दूर किसी दूर-दराज के इलाकों में ड्यूटी लगती है, उन्हें तरह-तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन आर्मी मुख्यालय ने वर्ष 2019 में माना था कि कुछ लोग डिजेबिलिटी पेंशन के प्रावधानों का दुरुपयोग कर रहे हैं। कुछ टॉप अधिकारी ज्यादा पेंशन पाने के लिए रिटायरमेंट के कुछ दिनों बाद ही डिजेबिलिटी सर्टिफिकेट बनवा लेते हैं। एक सीनियर ऑफिसर ने कहा, डिजेबिलिटी सर्टिफिकेट पर औसतन 20 से 50 प्रतिशत ज्यादा पेंशन मिलती है। कुछ लोगों द्वारा डिजेबिलिटी पेंशन के सिस्टम का दुरुपयोग होने से रोकने के लिए उचित आकलन और सही समाधान निकालना होगा।हालांकि, ज्यादातर डिजेबिलिटी सर्टिफिकेट्स सही होते हैं, इसलिए उनपर कोई आंच नहीं आनी चाहिए। ध्यान रहे कि 7वें वेतन आयोग ने भी डिजेबिलिटी पेंशन की दावेदारी में बड़ी उछाल पर सवाल खड़ा किया था, खासकर सीनियर रैंक्स में। लेकिन कुछ रिटायर्ड आर्मी अफसर कैग रिपोर्ट की आलोचना की है। उनका कहना है कि कैग बेकार में उंगली उठा रहा है। एक रिटायर्ड अफसर ने कहा, ऑफिसर अपने उम्र के पांचवें दशक में रिटायर करते हैं जबकि सैनिक तीसरे दशक में। साफ है कि जवानों के मुकाबले ज्यादा उम्र होने की वजह से अफसर अधिक समस्याओं के भी शिकार होते हैं। 

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