- कर्नाटक में, बीजेपी अजा के लिए आरक्षित 36 सीटों में सिर्फ 8 सीटें जीतने में सफल रही

नई दिल्‍ली।  कर्नाटक में, बीजेपी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 36 सीटों में सिर्फ 8 सीटें जीतने में सफल रही। पार्टी आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षित सीटों में से एक भी सीट जीत नहीं पाई। वहीं, कांग्रेस 21 एससी और 14 एसटी  सीटें जीतने में कामयाब रही। 
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी के लिए बड़ा झटका साबित हुए हैं। खासकर अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर बीजेपी का प्रदर्शन खराब रहा है। चुनाव से पहले राज्य सरकार ने इन सीटों पर दोनों समुदायों के लिए आरक्षण बढ़ाने का ऐलान किया था। पार्टी को भरोसा था कि चुनाव में इसका फायदा मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।  
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में कर्नाटक की अधिकतम एससी-एसटी सीटें जीती थीं। पार्टी ने 2014 के चुनावों में 131 निर्वाचन क्षेत्रों में 67 और 2019 में 77 सीटें जीतीं। दोनों सामाजिक समूह बीजेपी के लाभार्थी (केंद्रीय कल्याण) योजनाओं के केंद्र का अहम हिस्सा रहा है।अब आने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर पार्टी ने रणनीति बदली है। बीजेपी नेताओं ने कहा कि पार्टी की एससी-एसटी पहुंच को और बढ़ाया जाएगा। क्योंकि राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के चुनावी राज्यों में इन एससी-एसटी मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है।बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, पार्टी अनुसूचित जाति (लेफ्ट) के लिए आरक्षण बढ़ाने के अपने फैसले के बारे में अनुसूचित जाति के मतदाताओं को समझाने में फेल रही। इस कारण बंजारा, भोवी और अनुसूचित जाति (राइट) समुदायों के मतदाताओं ने बीजेपी के खिलाफ मतदान किया। चुनावों से ठीक पहले बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने 17 प्रतिशत एससी कोटा में आंतरिक आरक्षण को सबसे पिछड़े एससी (लेफ्ट) के लिए 6 फीसदी, कम पिछड़े एससी के लिए 5।5 फीसदी अनुसूचित जाति के लिए 4।5 फीसदी कोटे के रूप में बांटने का फैसला किया था।
दिल्ली में बीजेपी के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने कहा- अनुसूचित जाति (राइट), भोवी और बंजारा समुदायों ने खासतौर पर महसूस किया कि हम अनुसूचित जाति (लेफ्ट) का पक्ष ले रहे थे। हमारे आकलन के अनुसार बेंगलुरु, तटीय कर्नाटक और बीदर को छोड़कर अनुसूचित जाति चुनाव में बीजेपी के खिलाफ एकजुट हो गई। जबकि बीजेपी ने चार एससी समुदायों बंजारा, भोविस, कोरमा और कोराचा को एससी लिस्ट से बाहर करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया था। ऐसे में कांग्रेस लोगों को गुमराह करने में कामयाब रही। 
कांग्रेस में 15 वाल्मीकि (एसटी) विधायक और 11 एससी (राइट) विधायक हैं। जबकि बीजेपी में वाल्मीकि (एसटी) से  2 और  एससी (राइट) से 2 विधायक हैं। कांग्रेस भी अनुसूचित जाति (लेफ्ट) समुदायों में अधिक विधायक पाने में कामयाब रही। कांग्रेस के टिकट पर इस समुदाय से 6 उम्मीदवार जीतें, जबकि बीजेपी के सिर्फ 2 प्रत्याशियों को ही जीत मिली।

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